Wednesday, January 19, 2005

मुझसे मिलने आओगे ना?

मज़बूरियाँ हैं जो बाँधे हैं,
वादे हैं जो मुझे निभाने हैं,
साथ नहीं दे पाऊँगी तुम्हारा
इसके लिए माफ़ तो कर पाओगे ना?

राहें बंद हुईं तुम्हारी अगर मेरी वज़ह से
ग्लानि से भर जाऊँगी मैं ज़िंदा रह के ।
जब भी कोई नया रास्ता दिखाएगी ज़िन्दग़ी
उस पर तुम आगे तो बढ़ जाओगे ना?

और जब मुझे ऐसी ज़रूरत पड़ेगी,
कि तुम्हारी यादें ही सहारा बन सकेंगी,
उस वक्त़ मेरे सपनों में तुम
ख़ुद आगे बढ़कर आओगे ना?

काँटें बन जायेंगी जब राहों में मेरी यादें
चुभने लगें हृदय में कुछ अनकहे वादे,
उस समय अपनी और औरों की ख़ातिर
तुम मुझे भूल तो पाओगे ना?

और जब कभी छूट रही होंगी मेरी साँसें अन्तिम,
कसक और बेबसी का अहसास बढ़ता होगा हर दिन,
उस दिन एक बार फिर सहारा देने को
कुछ पल के लिए ही, मुझसे मिलने आओगे ना?

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