Saturday, November 29, 2003

मुझे इंसानों की तरह जीने दो

मुझे इंसानों की तरह जीने दो
मुझे देवी न बनाओ।

मुझे देखकर
अचकचाकर
रास्ता न छोड़ो।
सब अपना रास्ता
ख़ुद बनाते हैं,
मैं भी बनाऊँगी।

मेरे लिए रास्तों में फूल न बिछाओ।

मुझे इंसानों की तरह जीने दो
मुझे देवी न बनाओ।

मैं गिरी हूँ
घुटने ही छिले हैं,
तुम्हारे भी छिले होंगे
कई बार, तो मुझे
वापस जाने का उपदेश न पिलाओ।

अपने काम छोड़ मुझे मरहम न लगाओ।

मुझे इंसानों की तरह जीने दो
मुझे देवी न बनाओ।

दुनिया कल तक तुम्हारी थी,
मेरे पास तुम कम ही आते थे।
जब भी आते थे, अपना एक रूप
मुझपर थोप जाते थे।
आज भी दुनिया पर तुम्हारा ही कब्ज़ा है,
पर आज मैं सड़कों पर निकली हूँ, बहुत काम हैं
तुम्हारे लिए खुद को परिभाषित करने का बोझ न दिलाओ।

मुझपर तुम्हारी बहन, बेटी या प्रेमिका का भी बंधन न लगाओ।
मुझसे मेरे अंदर बैठे इंसान की परिभाषा न चुराओ।
मुझे इंसानों की तरह जीने दो
मुझे देवी न बनाओ।

Tuesday, October 14, 2003

मैं आज बहुत उदास हूँ

मैं आज बहुत उदास हूँ।

कुछ अच्छा नहीं लिख पाऊँगी,
कुछ नया नहीं गुनगुनाऊँगी,
क्योंकि कुछ नया नहीं हुआ मेरे साथ,
बहुत से लोग उदास होते हैं दुनिया में,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

नहीं, नहीं इसपर ये हंगामा न मचाओ,
आँखों में उनसे बड़ा ये अचरज न लाओ,
कोई अभूतपूर्व घटना नहीं घटी जग में,
बहुत से लोग थककर रोते हैं मग में,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

मेरी मदद करने की कोशिश न करो,
उसके लिए कारण जानना पड़ता है,
बहुतों को नहीं पता होता है कि क्यों,
पर वे दुखी होते हैं यों ही,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

मुझे यों अकेला टहलता देख डरो मत,
साथियों के बुलाने की कोशिश करो मत,
कोई बिजली नहीं गिरी, बादल तक नहीं गरजे,
बहुत से लोग फिर भी डरे-सहमे होते हैं,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

मुझे सांत्वना न दो, सपने न दिखाओ,
ऐसा नहीं है कि कल मैं खुश नहीं रहूँगी,
सांत्वना, सपने, आशाओं के रहते हुए भी
कई लोग खालीपन महसूस करते हैं,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

दुखी न हो कि इस कविता से तुम्हें आनंद नहीं मिला,
आश्चर्य न करो कि मैं, मैं नहीं लग रही,
पता नहीं होने पर भी कि क्या करना है, सब कुछ-न-कुछ करते हैं,
नहीं कुछ तो मेरी तरह उदासी व्यक्त करते हैं,
मैं भी आज बहुत उदास हूँ।

मैं आज बहुत उदास हूँ।

Saturday, September 13, 2003

आज तो मुझे मानना पड़ेगा

हाँ, आज तो मुझे मानना पड़ेगा
कि तुमने मुझे हरा दिया है,
मैं सत्य की जीत की आशा में थी,
पर सिद्धांतों ने मेरे साथ छलावा किया है।

लेकिन नहीं तोड़ पाओगे मुझे क्योंकि
ऐसा कुछ पहली बार नहीं हुआ है,
तुम्हें मैंने पहले भी कई रूपों में देखा है,
कई बार तुमने मुझे परेशान किया है।

कई बार क़दम पीछे हटाए हैं मैंने,
पर सत्य के क़दम के साथ ईश्वर होता है,
पीछे हटने वालो क़दम छलांग लगाकर
पार कर जाएँगे तुम्हें, शायद तुमने नहीं सोचा है।

क्योंकि तुम्हारा इतिहास छोटा है,
और वो हमेशा छोटा ही रहा है,
इसलिए तुमने दूर की नहीं सोची
और हार का अहसास तुम्हारे साथ रहा है।

इसलिए मेरे साथ ये नाटक खेल क
उस अहसास को दबाना चाहते हो
तुम्हारे लिए अच्छा होता, अगर तुम ये देख पाते,
दबाने की कोशिश में उसे और भड़का देते हो।

वैसे आज तो मुझे मानना पड़ेगा
कि तुमने मुझे हरा दिया है,
पर यह तुमपर ही वापस आएगा
ज़हर का जो घूँट मैंने पिया है।

Wednesday, September 03, 2003

कहीं सच तो नहीं था?

वो निराश निग़ाहें, वो हताश बाँहें,
सहारे की गुहार करती वो आहें,
रास्ते चलते लुट जाने का किस्सा
कहीं सच तो नहीं था?

मैंने दुनिया में जीना सीखा है,
अविश्वास का घूँट पल-पल पीना सीखा है,
पर मेरी ओर बढ़ते उस हाथ का विश्वास
कहीं सच तो नहीं था?

घिरे बादलों में बिजली कभी चमक जाती है,
गलती से उसमें भले राहें दिख जाती हैं
पर दिखा था मुझे जो प्रकाश
कहीं सच तो नहीं था?

क्या मैंने सच में छोड़ दिया है विश्वास?
खड्गसिंह की हरक़त पर बाबा भारती का निःश्वास,
उनकी वो आशंका, वो शक़
कहीं सच तो नहीं था?


Wednesday, August 13, 2003

मैं क्रांतिकारी हूँ

मैं क्रांतिकारी हूँ।

मेरा परिचय, मेरा नाम बम-बंदूकों का मोहताज नहीं
मैं रक्षक हूँ उसका, जिसपर तुम्हें कोई नाज़ नहीं।
क्योंकि वह आह्वान है भविष्य का, पिछड़े कल की आवाज़ नहीं,
क्योंकि वह सीखता है इतिहास से, गिराता वर्तमान पर ग़ाज़ नहीं।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

जब राह के सारे काँटे हटाने के बाद भी,
जो चुभ रहा है तुम्हें अभी तक, आज भी,
वो मुक्ति का वाहक, वो सपनों का ग्राहक,
मैं ही हूँ खोखली परम्पराओं की मौत का साज़ भी।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

याद है वो गैलिलियो, जिसे तुमने मिटाया था।
याद है वो मीरा जिसे ज़हर पिलाया था।
आज भी जो तुम्हारे नियमों को चुनौती दे रहा है,
उसे दबाने की कोशिश में शोला तुमने बनाया था।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

हाँ, तुमने मुझे सड़कों पर चलते देखा है।
वहाँ पड़े हर पत्थर, हर धूलकण से मैंने सीखा है,
कि उपेक्षित और अस्वीकृत में कितना दम होता है,
और उन्हें उनका स्थान दिलाकर इतिहास मैंने लिखा है।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

तुम मुझे उपद्रवी का नाम देते हो,
मेरे खून की नदी में अपनी नैया खेते हो,
वह शरीर मर सकता है, जिसमें मैंने रूप धरा है,
क्रांतिकारी नहीं मरता, चाहे ज़हर के कितने प्याले देते हो।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

यह हो सकता है कि मैं तुम्हारी सत्ता पलट जाऊँ।
यह हो सकता है कि उससे पहले धूल में मिल जाऊँ।
पर मेरी जीत एक वजह, एक कारण का साथ देने में है,
तुम अपने स्वार्थ के लिए मरते जीत नहीं सकते, मैं कहीं भी जाऊँ।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

हाँ, यह सच है मेरे पास भीड़ नहीं, बाहुबल नहीं,
हाँ, सच है कि क्रांतिकारी हज़ारों में एक पैदा होता है,
पर यह भी सच है कि वो एक ही काफी होता है,
इसलिए वो क्रांतिकारी होता है।

मैं क्रांतिकारी हूँ।

Saturday, March 22, 2003

उन्नति और इंसान

काल-चक्र यह नहीं रुकेगा
तेरे रुदन से नहीं झुकेगा
युग बदलेगा, बदलेगा समाज
रुका रहा तो गिरेगी गाज़।

शायद तू सच ही कहता है,
उन्नति में शैतान छिपा है,
विकास-विनाश का अनंत क्रम पर
किसी के समझे नहीं रुका है।

निर्णय तेरा, जीवन तेरा
तू चाहे तो पीछे रुक जा
रो ले कुछ दिन परिवर्तन पर
फिर पीछे रहने पर पछता।

या फिर समय की सुन पुकार,
आँसू को मत बना हथियार,
पौरुष अपना जगा कर देख तू
और धरा पर मत बन भार।

देवत्व अगर आँसू हैं तो,
उसे देवलोक के लिए बचा,
इन्सान बना कर्म करने को,
मानवता से मुँह न छिपा।


Thursday, February 06, 2003

उस देश में आतंकवादी पैदा होते हैं

वो कोई पत्थर नहीं होगा, प्रकृति की गिराई बिजली भी नहीं,
मानव के सधे सचेत हाथ, सोच-समझ कर एक बम गिरा जाएँगे,
पास की गली में खेलते कुछ फुर्तीले बच्चे शायद बच जाएँगे,
आज तुम चुप रहोगे, कल वे तुम्हारे दरवाज़े पर आएँगे,
तुम्हारी चुप्पी, कायरता की हँसी उड़ाएँगे, तुम्हें मार गिराएँगे।

तब यह न कहना कि उस देश में आतंकवादी पैदा होते हैं।