Saturday, February 07, 2004

थाम लो मुझे

हर गुज़रता हुआ लम्हा आज
दिलाता है मुझे ये अहसास
कि थाम लो मुझे, मैं फिसलता जा रहा हूँ।
नहीं आऊँगा लौटकर, मैं हूँ ख़ास।

रुक जाओ और एक नज़र दौड़ाओ
यहाँ गुज़ारे समय पर और खो जाओ
एक पल के लिए उन बातों में,
जो अभी तो सच हैं, पर कल पाओ न पाओ।

ये चेहरे जिनकी तुम्हें आदत है
ऐसी कि कभी लगा ही नहीं
कि ये बदल भी सकते हैं, ऐसे बदलेंगे
कि पहचान न पाओगी जो मिले भी कहीं।

ये हँसी, ये आँसू जो रोज़ की बात हैं
कल ऐसे दुर्लभ हो जाएँगे तुम सोच नहीं सकती।
बसा लो इन्हें यादों में, पथ में काम आएँगी,
गुज़रते समय को तो तुम रोक नहीं सकती।

एक बार प्यार से देखो
उन्हें भी जिनसे गुस्सा हो,
क्या पता उन्हीं की याद कल को
तुम्हारे जीवन का सबसे हसीन किस्सा हो।

हर गुज़रता हुआ लम्हा आज
भेज रहा है मुझे इन सबके पास।
कहता है थाम लो मुझे, मैं फिसलता जा रहा हूँ।
नहीं आऊँगा लौटकर मैं हूँ ख़ास।