Wednesday, March 27, 2002

काम नहीं रुकता है जग में

काम नहीं रुकता है जग में।

भाग्य से मारे या कर्मों से नाकारे,
रुकने वाले राही सारे,
छोड़ भले जाते हों मग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


ना रहें जो हों निकालने वाले,
ख़ुद से ही तो निकल हैं आते,
काँटे जो चुभते हैं पग में।
काम नहीं रुकता है जग में।

शिकारी तन को मार भले दें,
मार नहीं सकते उड़ने की,
इच्छा जो होती है खग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


Sunday, March 24, 2002

मेरे लिए समय बोल जाता है

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं कहती हूँ वो एक हवाई किला है,
सागर का उफान नहीं जल का बुलबुला है।
तुम हँसते हो, कहते हो टक्कर ले लो।
मैं चुप हो जाती हूँ, तुम्हारे साथ की कमी पाती हूँ,
पर एक दिन एक आँधी के झोंके में
वो जड़ से उखड़ जाता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं सपने देखती हूँ, तुम्हें सुनाती हूँ,
सच हो सकते हैं, उम्मीद के गीत गाती हूँ,
तुम हँसते हो, कहते हो - सच कर लो,
मैं चुप हो जाती हूँ, अपना काम करती जाती हूँ,
एक दिन भाग्य-विधाता खुश हो जाता है,
मेरे सपने को यथार्थ बनाकर झोली में डाल जाता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं कल्पनाओं की बात करती हूँ, तुम अनुभव सुनाते हो,
अनुभव बुरे हैं, तभी कल्पने चाहिए, ये भूल जाते हो,
तुम हँसते हो, कहते हो - बकवास है ये,
मैं चुप हो जाती हूँ, कल्पनाओं को रूप देती जाती हूँ,
एक दिन उन्हीं कल्पनाओं के साथ
पूरा जग उमड़ आता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।