Wednesday, March 27, 2002

काम नहीं रुकता है जग में

काम नहीं रुकता है जग में।

भाग्य से मारे या कर्मों से नाकारे,
रुकने वाले राही सारे,
छोड़ भले जाते हों मग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


ना रहें जो हों निकालने वाले,
ख़ुद से ही तो निकल हैं आते,
काँटे जो चुभते हैं पग में।
काम नहीं रुकता है जग में।

शिकारी तन को मार भले दें,
मार नहीं सकते उड़ने की,
इच्छा जो होती है खग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


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