Friday, December 20, 1996

जन्म न लेना भारत में।

ऐ आने वाली पीढ़ियों!
तुम जन्म न लेना भारत में।
माँ की कोख में मर जाना तुम
और रहना राहत में,
पर जन्म न लेना भारत में।

क्योंकि मिलेंगे तुम्हें वो पूर्वज,
सौ चूहे खा कर जो करते थे हज।
ज़लील कहने में भी उन्हें शर्म आएगी
क्योंकि जलील शब्द की चली जाएगी इज़्ज़त।

तुम्हारा अतीत शर्म से तुम्हें जीने न देगा,
और व्यक्तित्व अपमान का घूँट पीने न देगा।
साँप छुछुंदर सी स्थिति होगी तुम्हारी,
'भारतीयता' का कलंक कहीं का रहने न देगा।

इतिहास की पुस्तकें देंगी घोटालों की लिस्ट,
मिलेंगे घोटालों के खिलाड़ी एक से एक हिट।
जानोगे तुम कि लोकतंत्र में सरकारें बनती थीं,
और तेरह दिनों के भीतर जाती थीं पिट।

मिलेगा तुम्हें अतीत में वह 'उन्नत समाज',
जहाँ आदमी नहीं रहा करते थे बाज,
जहाँ जनता के रक्षकों के पास होता था
मौत की धुनें बजाने वाला कोई साज।

जहाँ बाजारों में दूल्हे बिका करते थे,
लोग 'प्रेम' का हिसाब लिखा करते थे।
और बच्चे अपने माँ-बाप से
यही सामाजिकता सीखा करते थे।

और कितना कुछ कहूँ, तुम ही बताओ
चाहती हूँ, इतना सा ही तुम जान जाओ,
अगर ज़िन्दग़ी जीनी ना हो तुम्हें लानत में
तो फिर कभी भी जन्म न लेना भारत में।

Monday, December 09, 1996

जीवन और मन

कुछ घटनाएँ जो छू जाती हैं कहीं अंतर्मन को,
ज़रूर कभी-कभी प्रभावित करती हैं जीवन को।

प्यार के बदले में एक चाँटा.
कभी धैर्य का पाठ है पढ़ाता,
कभी विद्रोह का सबक बन जाता,
और मन को कहीं है छू जाता।

अनपेक्षित प्यार भरी एक चपत,
कभी बन जाती है जीवन की हिम्मत,
कभी लगती है कोई बनावट,
दे जाती है मन को कोई हरकत।

छाँव की खोज में मिलने वाली एक धूप,
कभी ले लेती है चुनौती का रूप,
कभी लगती है दुर्भाग्य-सी कुरूप,
मन को ये झकझोरती है खूब।

निराशा की धूप में आशा का पेड़,
कभी-कभी देता है शीतल छाँव घनेर,
कभी लगता है पर बनावटी एक खेल,
मन को चंचलता दे जाता है ढेर।

दोस्तों की खोज में मिलने वाले दुश्मन,
कभी तो नहीं देते चेहरे पर कोई शिकन,
कभी वो ही हो जाते हैं जीवन की उलझन,
और उलझता चला जाता है मन।