जन्म न लेना भारत में।
ऐ आने वाली पीढ़ियों!
तुम जन्म न लेना भारत में।
माँ की कोख में मर जाना तुम
और रहना राहत में,
पर जन्म न लेना भारत में।
क्योंकि मिलेंगे तुम्हें वो पूर्वज,
सौ चूहे खा कर जो करते थे हज।
ज़लील कहने में भी उन्हें शर्म आएगी
क्योंकि जलील शब्द की चली जाएगी इज़्ज़त।
तुम्हारा अतीत शर्म से तुम्हें जीने न देगा,
और व्यक्तित्व अपमान का घूँट पीने न देगा।
साँप छुछुंदर सी स्थिति होगी तुम्हारी,
'भारतीयता' का कलंक कहीं का रहने न देगा।
इतिहास की पुस्तकें देंगी घोटालों की लिस्ट,
मिलेंगे घोटालों के खिलाड़ी एक से एक हिट।
जानोगे तुम कि लोकतंत्र में सरकारें बनती थीं,
और तेरह दिनों के भीतर जाती थीं पिट।
मिलेगा तुम्हें अतीत में वह 'उन्नत समाज',
जहाँ आदमी नहीं रहा करते थे बाज,
जहाँ जनता के रक्षकों के पास होता था
मौत की धुनें बजाने वाला कोई साज।
जहाँ बाजारों में दूल्हे बिका करते थे,
लोग 'प्रेम' का हिसाब लिखा करते थे।
और बच्चे अपने माँ-बाप से
यही सामाजिकता सीखा करते थे।
और कितना कुछ कहूँ, तुम ही बताओ
चाहती हूँ, इतना सा ही तुम जान जाओ,
अगर ज़िन्दग़ी जीनी ना हो तुम्हें लानत में
तो फिर कभी भी जन्म न लेना भारत में।
3 comments:
It all looks too much frustrated view. Sorry i would like to interupt you by a single comment which really impressed me and changed my way of thinking toward greatnees of human life at the entry at Swami Narayan Temple in Gandhinagar, quaoting "Man is creator of his own destiny". Its too simple but it really has a big massege with it.
You have to look at the date of creation of the poem. Its long, long back. I was a 8th standard student then. Lots has changed since then. I have changed. It isn't possible for me defend all I wrote then. And if you raise your eyebrows on change, please read this before commenting - http://www.atgig.com/jaya/MyWritings.html
:)
अतिसुन्दर |
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