Thursday, October 17, 1996

एक और क्रांति

एक क्रांति है हो रही रुकने नहीं देना है,
जो गौरव है खो चुका वापस फिर लेना है।
बस एक चाहिए प्रयास ताकि ज़ुल्मों का अंत हो,
क़यामत के प्रश्नों में हर राष्ट्रद्रोही बंद हो।
पर्दा है खुल रहा सटने नहीं देना है,
जो गौरव है खो चुका वापस फिर लेना है।

ऐ गद्दी के मलिक! इस क्रांति को दबाओ मत,
एक स्वप्न जो है दिख रहा, उसे तुम मिटाओ मत।
क्या नहीं हुए आज तक तुम ज़ुल्म के शिकार?
रोता नहीं हृदय तुम्हारा सुनकर हाहाकार?
एक चिंगारी जो भड़की है उसे बस बुझाओ मत,
आगे बढ़ने वालों के पीछे को भगाओ मत।

यदि रोकोगे तो कर लो तुम्हें जो भी कर लेना है,
मार्ग के हर गड्ढे को भर हमें भी देना है।

आगे बढ़ना चाहती है आज धरा की ये बेटी,
जोश भरने के लिए लेकर चूसित खून की पेटी।
ऐ राष्ट्र! ऐ समाज! इसे रोकना नहीं,
साथ नहीं दे सकते तो टोकना नहीं,
है शोषणों के पालने में बचपन से ये लेटी,
बर्दाश्त नहीं होगी इससे अब तुम्हारी ये हेठी।

एक दीपक से ज्वाला बना इसे देना है,
आमंत्रित हैं वो जिन्हें दायित्व ये लेना है।

एक और क्रांति अपना संदेश तुम्हें दे रही,
कमल लाल और एक रोटी तुम्हें दे रही,
जान के डर से पीछे कभी भी हटना नहीं,
कर ऐसा राष्ट्रद्रोही तुम एक और बनना नहीं,
आओ सदी के अंत की क्रांति तुम्हें बुला रही,
स्वप्न मुक्ति का तुम्हें एक और है दिखा रही।

इस स्वप्न को साकार तुम्हें कर के दम लेना है,
जो गौरव है खो चुका वापस फिर लेना है।

Monday, October 14, 1996

दिल और दिमाग़

"चल बारिश में भींगे", दिल ने कहा।
दिमाग़ बोला, "भीगे कपड़े सुखाओगी कहाँ?"
दिल के फ़ैसलों को हमेशा दिमाग़ रोकता है,
जबकि दिल पहले से है, दिमाग़ समय के साथ हुआ।

दिल चाहता है कल्पना की ऊँची ऊँची उड़ाने भरना,
दिमाग़ चाहता है पहले रक्षा कवच बनाना।
दिल चाहता है मौज मनाना,
दिमाग़ चाहता है भविष्य बनाना।

दिल-दिमाग़ के इस संघर्ष में जब-जब दिमाग़ विजयी घोषित हुआ है,
एक नया सितारा सभ्यता का उदित हुआ है।
उस-उस समय मनुष्य ने प्रगति की है,
और अपने दुश्मनों की दुर्गति की है।
तब-तब उसके माथे पर शोहरत का टीका चमका है।
तब-तब क्रांति की कांति से वह तेजस्वी और दमका है।

लेकिन जब-जब वह दिमाग़ दिल पर हावी होता जाता है,
तब-तब मानव मानवता की पहचान खोता जाता है।
उस समय किसी कवि का उदर अपनी ही कविता को खा जाता है,
अपने गानों को कोई गायक तब ख़ुद ही भूल जाता है।

तब आदमीयत का क़त्ल होता है, इंसानियत की जाती है जान,
एकादशी आती नहीं, चैन से सोते हैं भगवान।
तब भावनाओं का रह नहीं जाता है कोई मूल्य,
और तब तब यह धरती हो जाती है नर्क तुल्य।
तब-तब भावनाओं पर की चोट से भड़कती है प्रकृति के क्रोध की चिंगारी,
तब उस गर्मी में पिघल जाती है पृथ्वी पर की बर्फ सारी।
तब आता है प्रलय का काल,
करने को पृथ्वी का संहार।
फिर होता है वाराह अवतार,
करने को पृथ्वी का उद्धार,
कोई एक मनु बचता है,
विश्व एक नया रचता है।

फिर दिलयुक्त, दिमाग़हीन मानव आता है,
कुछ दिन शांति के गीत गाता है,
और फिर जब वह दिमाग़ पाता है,
यही इतिहास खुद को दोहराता है।

Friday, October 04, 1996

बादल से आग्रह

ओ बादल! हार मानी है तुमसे कई रवियों ने,
महिमा गाई है तुम्हारी कई कवियों ने।

सुना है कि एक बार एक प्रेमी का व्यथा,
सुनाई थी जाकर उसकी प्रेमिका को उसकी कथा,
आज मैं भी अपना एक संदेश विश्व को सुनाना चाहती हूँ,
और उस संदेश के वाहक के रूप में तुम्हें पाना चाहती हूँ।
जाओ, आज दुनिया वालों को मेरा संदेश दे दो,
"दुनिया वालों! भावी पीढ़ीयों को उनके प्रेम-पूरित देश दे दो।"
उनसे कहो कि हैवानियत की राह से वापस हो जाएँ,
उस वक़्त से पहले जब इन्सानियत सो जाए।

मेघ! तेरे जल की तुलना लोगों ने आँसू से की है,
देख ले आज इन आँखों में आँसू भी हैं,
आ, मेरी आँखों के आँसू ले ले,
और वर्षा के द्वारा पूरी दुनिया को दे दे,
मानवता की विदाई पर निकलने वाले10
आँसू से तू पूरी दुनिया ही भिगो दे।
जा हवा के साथ तू मानवता की ओर,
और लाकर वह उपहार मानवों को दे दे।

Thursday, October 03, 1996

मुझे किसी अनजान की याद आती है

कौन कहता है कि अनजान व्यक्ति महत्वहीन है?
उसका महत्व उससे पूछो जो कि ग़मगीन है।

जब जब ग़मों में डूबी रहने पर भी
चारों ओर से मुसीबतें ही आती हैं,
तब तब किसी सच्चे साथी की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब जीवन में भटकाव महसूस होता है,
और फिर सँभलने की बारी आती है,
तब तब मजबूत सहारे की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब सर पर किसी का हाथ नहीं होता
और जीवन की धूप तेज हो जाती है,
तब तब एक शीतल छाया की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब ज़िन्दग़ी को ढोने में
कंधों की शक्ति क्षीण हो जाती है,
तब तब मजबूत कंधों की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब कोई गलत राह चुन जाती हूँ
और आत्मा ख़ुद की ही धिक्कार पाती है,
तब तब हार्दिक सांत्वना की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब मेरी आत्मा और इन्द्रियाँ
समाज के विपरीत चलना चाहती हैं,
तब तब एक सही सलाहकार की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।

जब जब किसी से डरकर सहमकर
आत्मा ठिठक कर खड़ी रह जाती है,
तब तब आंतरिक शक्ति की खोज में
मुझे किसी अनजान की याद आती है।