Sunday, June 16, 2002

कहीं कोई रास्ता बुलाता तो है

चौराहे आते हैं, भ्रमित कर जाते हैं,
चलते-चलते मुसाफिर रुक जाता तो हैं,
पर कोई अनजानी-सी शक्ति उसे खींच लेती है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

धूल उड़ती है, आँखों में पड़ती है,
नयनों से पानी छलक जाता तो हैं,
पर किसी प्रेरणा से ख़ुद के हाथ उसे पोंछ लेते हैं,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

परेशान हुआ मन, हताश हुआ तन,
रह-रह कर हतोत्साहित कर जाता तो है,
पर चलते रहने की प्रेरणा कोई अदृश्य वाणी दे जाती है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

कविता के शब्द, शब्दों के अक्षर बिखर जाते हैं,
गीत का प्रवाह रुक जाता तो है,
पर कोई सहेज देता है शब्दों को, कलम लौटा जाता है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो है।

Wednesday, March 27, 2002

काम नहीं रुकता है जग में

काम नहीं रुकता है जग में।

भाग्य से मारे या कर्मों से नाकारे,
रुकने वाले राही सारे,
छोड़ भले जाते हों मग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


ना रहें जो हों निकालने वाले,
ख़ुद से ही तो निकल हैं आते,
काँटे जो चुभते हैं पग में।
काम नहीं रुकता है जग में।

शिकारी तन को मार भले दें,
मार नहीं सकते उड़ने की,
इच्छा जो होती है खग में।
काम नहीं रुकता है जग में।


Sunday, March 24, 2002

मेरे लिए समय बोल जाता है

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं कहती हूँ वो एक हवाई किला है,
सागर का उफान नहीं जल का बुलबुला है।
तुम हँसते हो, कहते हो टक्कर ले लो।
मैं चुप हो जाती हूँ, तुम्हारे साथ की कमी पाती हूँ,
पर एक दिन एक आँधी के झोंके में
वो जड़ से उखड़ जाता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं सपने देखती हूँ, तुम्हें सुनाती हूँ,
सच हो सकते हैं, उम्मीद के गीत गाती हूँ,
तुम हँसते हो, कहते हो - सच कर लो,
मैं चुप हो जाती हूँ, अपना काम करती जाती हूँ,
एक दिन भाग्य-विधाता खुश हो जाता है,
मेरे सपने को यथार्थ बनाकर झोली में डाल जाता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।

मैं कल्पनाओं की बात करती हूँ, तुम अनुभव सुनाते हो,
अनुभव बुरे हैं, तभी कल्पने चाहिए, ये भूल जाते हो,
तुम हँसते हो, कहते हो - बकवास है ये,
मैं चुप हो जाती हूँ, कल्पनाओं को रूप देती जाती हूँ,
एक दिन उन्हीं कल्पनाओं के साथ
पूरा जग उमड़ आता है।

मेरे लिए समय बोल जाता है।

Tuesday, January 29, 2002

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

बहुत टूट जाती हूँ,
बहुत थक जाती हूँ,
लड़खड़ा कर गिरते-गिरते सहारे के लिए
लाठी एक मिल जाती तो है।

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

विश्वास नहीं रहता,
कोई तर्क नहीं चलता,
पर टूटते हुए मन में कई बार
बिजली सी चमक जाती तो है।

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

खून और लोथड़ों से भरा युद्ध क्षेत्र,
विवशता और आँसू से भरे नेत्र,
मगर विध्वंश की इस बेला में सृष्टि
नव-निर्माण के गीत गुनगुनाती तो है।


कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

विज्ञान में विध्वंश है,
मानव में दैत्यांश है,
पर कुरुक्षेत्र के प्रेरक कृष्ण की प्रेमलीला
एक आशा दिला जाती तो है।

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

क्लांत मन, हताश प्राण,
अंतर से निकल चुकी जान,
पर मृत्युदूत के आने से पहले ही
एक रोशनी झलक जाती तो है।

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।

मृत्यु का गान है,
अंत का फरमान है,
पर अँधेरी सुरंग में कभी
शमा एक झिलमिलाती तो है।

कहीं कोई किरण नज़र आती तो है।