Friday, August 22, 2008

बड़े दिनों के बाद

बड़े दिनों के बाद आज
सूरज से पहले जगी,
बड़े दिनों के बाद सुबह की
ठंढी हवा मुझपर लगी।

बड़े दिनों के बाद पाया 
मन पर कोई बोझ नहीं,
बड़े दिनों के बाद उठकर
सुबह नयी-नयी सी  लगी।

बड़े दिनों के बाद दिन के
शुरुआत की उमंग जगी,
बड़े दिनों के बाद मन में 
पंख से हैं लगे कहीं।

बड़े दिनों के बाद आज
मन में एक कविता उठी,
बड़े दिनों के बाद आज,
कविता काग़ज़ पर लिखी। 

Sunday, January 13, 2008

मन के साथ भटकना होगा

मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।

हाँ, अभी देखी थी मन ने
रंग-बिरंगी-सी वह तितली
फूल-फूल पे भटक रही थी
जाने किसकी खोज में पगली।

पर वह पीछे छूट गई है
इन्द्रधनुष जो वह सुन्दर है
अब उसको ही तकना होगा।

मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।

बच्चों-सा जो कल सीधा था
और कभी किशोर-सा चंचल
आज वयस्कों-सा वह दूर, क्यों
रूप बदलता है पल-पल?

मन घबराए, गुस्सा आए
चोट लगे, आँसू आ जाएँ
हर कुछ को ही सहना होगा।

मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।

Thursday, January 10, 2008

खालीपन का संगीत

गाए हैं बहुत ही मैंने, सुख और दुःख के गीत
आओ सुनाऊँ आज खालीपन का भी संगीत।

महसूस की है तुमने रागिनी जो बजती है
जब बाहों में होकर भी मिलता नहीं मीत?

जब सैलाब-सा होता है मन के अंदर कोई पर
मिलती नहीं दो बूँद जिससे धरती जाए रीत।

मुस्कान की जगह आँसू आते आँखों में जब,
जीत कर भी ज़िन्दग़ी में मिलती नहीं जीत।

Thursday, January 03, 2008

हो रही है बेचैनी सी

हो रही है बेचैनी सी, कुछ तो लिखना है मुझे,
ना हो बात जो ख़ुद पता पर, वो कोई कैसे कहे?

इंतज़ार की आदत जिसको, बरसों से है हो गई
मिलन के सपने बुनने की समझ उसे कैसे मिले?

उजड़े महलों पर ही नाचना, जिसने हरदम सीखा हो
रंगशाला की चमक भला, कैसे उसकी आँख सहे?

जिसने हँसना सीखा है, ज़िन्दग़ी के मज़ाक पर
दे देना मत उसको खुशी, खुशी का वो क्या करे?