Sunday, June 16, 2002

कहीं कोई रास्ता बुलाता तो है

चौराहे आते हैं, भ्रमित कर जाते हैं,
चलते-चलते मुसाफिर रुक जाता तो हैं,
पर कोई अनजानी-सी शक्ति उसे खींच लेती है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

धूल उड़ती है, आँखों में पड़ती है,
नयनों से पानी छलक जाता तो हैं,
पर किसी प्रेरणा से ख़ुद के हाथ उसे पोंछ लेते हैं,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

परेशान हुआ मन, हताश हुआ तन,
रह-रह कर हतोत्साहित कर जाता तो है,
पर चलते रहने की प्रेरणा कोई अदृश्य वाणी दे जाती है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो हैं।

कविता के शब्द, शब्दों के अक्षर बिखर जाते हैं,
गीत का प्रवाह रुक जाता तो है,
पर कोई सहेज देता है शब्दों को, कलम लौटा जाता है,
कहीं कोई रास्ता बुलाता तो है।