नववर्ष
"स्वागत है नववर्ष
विदा पुरातन वर्ष
लेकर आए हो तुम हर्ष"
कह रहे हैं सब
नववर्ष जो आया है अब।
आ रही हैं शुभकामनाएँ,
कि गए वर्ष को हम भूल जाएँ,
और साथ लेकर नया एक हर्ष,
प्रारंभ करें अपना नववर्ष।
तो क्या हम भूल जाएँ,
गए वर्ष की असफलताएँ,
जिनकी खीझ हमें चुनौती देती है,
कि इस वर्ष हम पाएँ सफलताएँ?
और क्या भूल जाएँ वो सफलताएँ,
जिनके के लिए हमने खुशी के गीत हैं गाए,
और जिनसे हमें बल मिले है,
कि इस वर्ष भी हम आगे बढ़ते जाएँ?
क्या मिटा दें निशान उन अपनों के,
जो अब काबिल हैं बस सपनों के,
क्योंकि अब वे लौटकर नहीं आएँगे,
और हम उनके पास जाना नहीं चाहेंगे?
क्या भूल जाएँ हम उन बेगानों को,
जिन्होंने सजाया हमारे जीवन के गानों को,
और जाते जाते जो दे गए संदेश,
कि बढ़ते हुए ही काटना जीवन अपना शेष?
क्या भूल जाएँ उन हृदय-विदारक घटनाओँ को,
जिन्होंने भरा था हमारे मन में भयंकर आक्रोश,
और जो अपनी भयानकता से दे गयी थीं
उन्हें दुबारा ना होने देने का हममें जोश?
क्या भूल जाएँ बीते उन सुहाने दिनों को,
जो मिलते हैं नसीब से कुछ इने-गिनों को
और जो दे गए हैं हमें ऊर्जा,
कि हम सह सकें इस वर्ष के भी गमों को।
और तुम ही बताओ हमारे शुभाकांक्षी
क्या हम तुम्हें भी भूल जाएँ?
बीते वर्ष का साथी होने के कारण,
तुम्हें भी क्या जीवन के एक कोने में छोड़ जाएँ?
नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते।
समय चला गया, पर कर्ज़ उसका नहीं भर सकते।
वही नींव है, जिसपर हम महल खड़ा करेंगे,
नव वर्ष में उस सूखे पेड़ को ही फिर से हरा करेंगे।
यदि यों ही भूलते जाते हम,
तो अपना अतीत आज नहीं पाते हम।
भूल जाते हम बुद्ध के उपदेश।
भूल जाते महावीर के संदेश।
भूल जाते कि जीसस ने हमें दया का उपदेश दिया था।
भूल जाते कि अशोक ने हमारे लिए क्या-क्या किया था।
भूल जाते वशिष्ठ, सांदीपनी, गर्ग और अपने आदर्शों को।
भूल जाते सत्य के लिए किए गए अपने संघर्षों को।
भूल जाते गार्गीस मैत्रेयी, अनूसूया और भारती को,
भूल जाते वीरों की उतारी जाने वाली आरती को,
भूल जाते हम गांधी के बलिदानों को,
फाँसी पर हँस कर झूलने वाले, इस विश्व के उन महानों को।
भूल जाते ये भी कि हम इंसान हैं।
इस दुनिया में चंद दिनों के मेहमान हैं।
इन चंद दिनों में सीख लेना है हमें बीतते समय के अनुभव से,
कि इस दुनिया के, इस दुनिया में हमपर कितने अहसान हैं।
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