उन्नति और इंसान
काल-चक्र यह नहीं रुकेगा
तेरे रुदन से नहीं झुकेगा
युग बदलेगा, बदलेगा समाज
रुका रहा तो गिरेगी गाज़।
शायद तू सच ही कहता है,
उन्नति में शैतान छिपा है,
विकास-विनाश का अनंत क्रम पर
किसी के समझे नहीं रुका है।
निर्णय तेरा, जीवन तेरा
तू चाहे तो पीछे रुक जा
रो ले कुछ दिन परिवर्तन पर
फिर पीछे रहने पर पछता।
या फिर समय की सुन पुकार,
आँसू को मत बना हथियार,
पौरुष अपना जगा कर देख तू
और धरा पर मत बन भार।
देवत्व अगर आँसू हैं तो,
उसे देवलोक के लिए बचा,
इन्सान बना कर्म करने को,
मानवता से मुँह न छिपा।
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