Thursday, January 20, 2005

चुप रहना ही पड़ता है ।

चुप रहना ही पड़ता है।

दिल में छिपकर, हर दिन हर पल,
जो बात मुझे अंदर से खाती है,
सामने आकर बोलना चाहूँ उससे पहले
ही तुम्हें समझ में आ जाती है।

कहने को क्या बचता है?
चुप रहना ही पड़ता है।

रातों को अक्सर सपने आते हैं,
जिनमें कोई हँसता रोता है।
सुबह उठकर पता चलता है
तुमने भी वही देखा होता है।

अलग तुमसे क्या रहता है?
चुप रहना ही पड़ता है।

जो गीत मेरे दिल में रहता है,
अचानक वही गुनगुनाते हो।
जो बात मेरे मन में आती है,
जाने कब तुम ही कह वो जाते हो।

आश्चर्य मुझे तो लगता है,
पर चुप रहना ही पड़ता है।

शिकायतें नहीं कर रही मैं
मन ही मन में मुसकाती हूँ।
सच हो सकता है यह सब
सोच कर हैरान तो मैं हो जाती हूँ।

शायद तुम्हें भी कुछ ऐसा ही लगता है,
कि बहुत कुछ होने पर भी
चुप रहना ही पड़ता है।

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