जड़ और फल
जड़ें मिट्टी के अंदर होती हैं,
वहाँ पानी और पोषण तो रहता है।
पर हवा ढंग से नहीं पहुँचती और
जीवन जड़ है, कभी नहीं बहता है।
खुली हवा खाते हैं, तोड़े जाते हैं,
फल जो ऊँचाई पर उगते हैं।
किसी की भूख मिटाते हैं,
किसी बीमार का पथ्य बन जाते हैं।
कई हाथों से गुज़रते हैं, दुनिया देखते हैं,
और दुनिया के काम आते हैं।
पर जीवन उनका भी तो जड़ से ही आता है,
और इसलिए एक सवाल मुझे खाए जाता है -
काश ये समझ पाती कि क्या करूँ।
फल बनूँ या कि मैं जड़ बनूँ?
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