Friday, February 04, 2005

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है।

किस्से नहीं सुनाते हम,
हाल-ए-दिल नहीं बताते हम,
ज़ाहिर करते नहीं हम पर
तक़दीर की क्या इनायत है।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है।

डरते हैं हम अपने ही कल से,
जीते हैं एक पल से दूजे पल पे,
कैसे बताएँ इनायत करने वाली
तक़दीर की क्या हिदायत है।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है।

आज हम बाँटे ख़ुशियाँ अपनी,
रहमदिल हुई कब दुनिया इतनी,
कल छिन गईं तो सह न सकेंगे,
जो हँसी में उड़ाने की रवायत है।

दुनिया को हमसे बेरुख़ी की शिक़ायत है।