Monday, September 02, 1996

तुम इंसान हो

क्यों मानते हो अपना देश एक छोटी सी धरती,
क्यों नहीं चाहते वह भूमि जो कोटि-कोटि के दामन भरती,
क्या मिलेगा तुम्हें इस स्वर्ग को उजाड़कर,
जगत्-गुरु होने का गौरव नकार कर?
कब मिल सकेगा तुम्हें उन शहीदों-सा मान,
जिन्होंने तुमसे ही उलझते हुए दे दिए अपने प्राण?
वे शायद आभारी हैं तुम्हारे कि तुमने उन्हें मान दिया,
पर, आख़िर क्या चाहते हो जो हर बहन को रुलाने का काम है ठान लिया?
ज़रा सोचो उस बेचारी बहन की कथा,
जो राखी के दिन मना रही है भाई के मौत की व्यथा।
ज़रा सोचो उस स्त्री का करुण कहानी,
जिसे एक वर्ष में हटानी पड़ी है सुहाग की निशानी,
जो ससुराल के लिहाज से रो भी नहीं पा रही,
उसकी आह महसूस करो जो तिल-तिल कर है कराह रही।
सोचो उस माँ के बारे में जिसके आगे बच्चे की लाश पड़ी है,
अविश्वस्त-सी जिसकी आखें उस लाश पर ही गड़ी हैं।
उस पिता के हृदय की सोचो, जिसके पास बेटे की चिता सजी है,
कितना बदनसीब है वह कि उसके रहते बेटे को आग पड़ी है।
कौन है इस स्थिति का आधार?
कौन है इसका ज़िम्मेवार?
कभी तरस, तो कभी हँसी आती है तुम्हारे विचार पर,
कौन-सा गौरव चाहते हो इस गौरवमयी धरती को त्याग कर?

ऐ इन्सान, कहाँ खो गई तेरी इन्सानियत?
आदमी! किस ताक पर रख छोड़ी तूने आदमीयत?

क्यों मिटाना चाहते हो यहाँ से मोहब्बत का निशाँ,
कभी प्रेम से बोलो तो देखो कैसा बँधता है शमाँ।

इस धरती को स्वीकारो,
यों भाइयों को मत मारो,
देखो तो कितना कुछ है यहाँ तुम्हारे लिए,
'मेरा' छोड़ कहना सीखों 'हमारे' लिए।
फेंक दो यह घिनौना मवाद,
जिसे कहते हैं हम आतंकवाद,
इसके कारण अब ना किसी की माँग का सिन्दूर मिटे,
ना ही अब किसी बहन के हाथ से राखी छूटे।

लेकिन मेरी कलम कल्पना-लोक में जा रही है,
क्योंकि तुम्हारी आत्मा मेरी पुकार नहीं पा रही है,
या तुम एक सच्चाई से मुँह मोड़ना चाहते हो,
बेवज़ह अपना अद्भुत घर ख़ुद ही तोड़ना चाहते हो?
अपनों की आवाज़ की अवहेलना तो पशु भी नहीं करता,
तो क्या तुम्हें इन्सान की पुकार में अपनापन नहीं मिलता?

सोचो कि तब तुम एक पशु भी नहीं रह गए,
क्योंकि तुम्हारे जीवन-मूल्य नफ़रत की धारा में बह गए।
क्या कंधे पर बंदूकों के साथ तुम्हें अपना अस्तित्व नज़र आता है?
क्या अपने चेहरे पर इंसानी व्यक्तित्व नज़र आता है?

यदि हाँ, तो तुम्हारे दिल का आईना झूठा है,
क्योंकि हर सही इंसान विश्व का तुमसे रूठा है।

अब तुम ही सोचो नफ़रत ने तुम्हें क्या बना दिया है?
कि तुम इंसान हो, यह तक तुमने भुला दिया है।

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