अतीत, हक़ीकत और स्वप्न
एक हक़ीकत क्षण में अतीत हो जाएगी,
उसे वापस लाने की बात आशातीत हो जाएगी,
एक सपना क्षण भर में शायद सच हो जाएगा,
'कभी वह सपना था' - यह भाव कहीं नहीं बच पाएगा।
और फिर एक दिन ऐसा आएगा,
जब स्वप्न और अतीत की भूल-
भुलैया में, मानव विलीन हो जाएगा,
इन सबका अंत हो जाएगा।
फिर नए सपने होंगे, फिर नई हक़ीकत,
विधाता रचेगा फिर से, कुछ नई-नई सी क़िस्मत,
उनके नए सपने मानव को अतीत की ओर झुकाएँगे,
और वे हक़ीकत के लिए अतीत को खोज लाएँगे।
फिर जोड़े जाएँगे वे घड़े,
जिन्हें तोड़ा था किसी बड़े,
आदमी के निर्मम हाथों ने,
नहीं जुड़ने दिया गरीबी के आघातों ने,
फिर सूतों और रेशम के अवशेषों से
पता लगेगा सामाजिक विषमता का।
और अतीत के विकृत समाज की दुहाई देकर,
वो नारा लगाएँगे समता को।
फिर एक दिन अतीत खोजने वाले अतीत बन जाएँगे,
फिर कुछ नए सपनों के सौदागर,
बनाएँगे सपनें के सुंदर घर।
और अपने अतीत को ढूँढ़ लाएँगे।
स्वप्न और अतीत की यह कहानी युगों-युगों तक चलती रहेगी
कहानी हक़ीकत की बनती रहेगी, बिगड़ती रहेगी,
अतीत और स्वप्न आते-जाते रहेंगे,
स्वप्न-द्रष्टा अतीत बन जाते रहेंगे।
लोग आते रहेंगे, लोग जाते रहेंगे।
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