कहाँ गया देवत्व हमारा
पापों में डूबी धरती को फिर ज़रूरत है वाराह अवतार की,
मानवता के शत्रुओं के लिए ज़रूरत है तांडव-युक्त हुंकार की,
फिर धरती चाहती है अपनी संतानों के लिए महासंबोधि,
फिर आज ज़रूरत है इस ज्ञान से मानव धर्म प्रसार की।
ज़रूरत है एक बुद्ध की जो मानवता का घूँट पिला सके,
और बलशाली राम चाहिए, सैकड़ों रावणों को हिला सके,
शासक-शासित को कर्तव्यों के बोध के लिए
चाहिए एक और चाणक्य जो जीवन राह बता सके।
चाहिए कृष्ण एक और ताकि पांडव विजयश्री पा सकें,
और चाहिए एक विश्वामित्र धरती पर स्वर्ग बना सके,
कोमलता को कायरता में परिणत करने वालों को
बनना होगा दुर्वासा, क्रोध की चिंगारी को आग बना सके।
चाहिए हमें एक और भरत, सिंह के दाँत गिना सके,
और चाहिए एक मौर्य जो सेल्यूकस को हरा सके,
सारे विश्व में घूम-घूम, लेकर ज्ञान मशाल
विवेकानंद चाहिए विश्व-विजयी कहला सके।
थे सब भारतवर्ष की थाती और अलौकिक गुण था पाया,
देवताओं का अंश है हममें यह सिद्ध कर के था दिखलाया,
कहाँ गया देवत्व हमारा? दानवों ने लेकर सहारा,
हमारी दानवी प्रकृति का, हमें अपनी राह से भटकाया।
हो चुके हैं इस धरती पर अत्याचारी नंद अनेकों,
पर हमने तो उन सबका सामना कर के दिखलाया,
कहाँ आज का है चन्द्रगुप्त, भारतीयों खोजो-देखो,
एक समय में इसी भूल से हमने अपना देश गँवाया।
नहीं मिलेगा कोई तुम्हें यहाँ अलौकिक शक्ति वाला,
बनना होगा तुमको ही मानवता का रखवाला।
कोई फ़ायदा है नहीं, डूब चुका है देश गर्त में
कहकर हमने अपनी इस ज़रूरत को खुद ही टाला।
क्यों नहीं बन सकते हैं हम राम, कृष्ण या बुद्ध महान्?
मानव के लिए कुछ भी नहीं असंभव, फिर क्या हैं हम इतने अज्ञान?
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