Wednesday, July 14, 2004

बहुत दिन हुए

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं।

ज़िन्दग़ी बदल ज़रूर गई है,
पर नयेपन का कोई शुरूर नहीं है,
कुछ नया सुनने-सुनाने को दिखा नहीं।

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं।

कुछ पुरानी चीज़ें दोहराई सी लग रही हैं,
पर यादों को ताजा न कर, उनका अपमान सा कर रही हैं,
जैसे हुआ था तब, वैसे उनसे कुछ सीखा नहीं।

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं।

नई जगह, नए चेहरे, नए नियम, नया शहर,
लोगों ने कहा अलग से होते हैं यहाँ चारों प्रहर,
अतीत से ऊब गई थी, फिर भी मन मेरा यहाँ रीता नहीं।

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं।

एक से उद्देश्य, पाने के एक से तरीके,
देखता नहीं कोई यहाँ अलग-सा जी के,
विभिन्नताओं का रस यहाँ कोई पीता नहीं।

बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं।

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