अतीत का भूत
मैं समय, काल और परिस्थिति का गुलाम हूँ,
बदलते समय की मार के भोक्ता का दूसरा नाम हूँ।
मैं अतीत से सीखने की कोशिश करता हूँ,
वर्तमान के अनुसार भी ख़ुद को बदलता हूँ,
क्योंकि अतीत हमेशा सही नहीं होता,
और सही क्या है - इसका जवाब कहीं नहीं होता।
मैं निर्णय लेता हूँ, उनपर विश्वास करता हूँ,
उनसे डिगना कमज़ोरी न हो, इससे डरता हूँ,
वर्तमान में मेरा विश्वास, मेरे निर्णय सही होते हैं,
पर जब वर्तमान अतीत बन जाता है तो वे महत्व खोते हैं।
अतीत के अंधे विश्वास और भविष्य की अंधी दौड़
के बीच मैं ख़ुद को फँसा सा पाता हूँ।
एक तो पता नहीं होता है कि अब क्या सही हो,
फिर वर्षों की आदत से बदलाव से डर जाता हूँ।
खुद को मना लेता हूँ कि जो है वो सही है,
दुनिया को चिल्ला कर बताता हूँ कि कुछ बेहतर नहीं है।
अतीत से लिपटा हुआ, अतीत को ढोता हुआ
कारण बनाता रहता हूँ क्यों उससे अच्छा कुछ नहीं है।
वर्तमान के अनुसार बदलने की अब मुझमें हिम्मत नहीं होती,
जो थी कभी अपेक्षा ख़ुद से, कहीं पड़ी रहती है सोती,
जब तक कोई और वर्तमान का पारखी नहीं आता,
अतीत का भूत मुझे अंदर-ही-अंदर खाता जाता।
मैं कौन हूँ?
मैं कुछ भी हो सकता हूँ -
एक मनुष्य,
एक समाज,
एक नया विचार,
एक राष्ट्र।
हम सबका एक अतीत और एक वर्तमान होता है,
और भविष्य की आशंकाओं के बीच हमें सच खोजना होता है।
No comments:
Post a Comment