Sunday, April 11, 2004

कविताएँ जो किसी की समझ में नहीं आती

अनजाना सा अपना ही अस्तित्व,
टूटा, बिखरा, खंडित व्यक्तित्व,
उलझनें ओर अथाह गहराइयाँ ज़िन्दग़ी की
जन्म देती हैं

उन कविताओं को जो किसी की समझ में नहीं आती।

हाथों से फिसलता ख़ुद पर का अधिकार,
अपनी कमज़ोरियों पर मिलती ख़ुद की धिक्कारस
अविश्वास ख़ुद पर, बौनापन अपना
जन्म देता है

उन कविताओं को जो किसी की समझ में नहीं आती।

एक कमज़ोरी छिपाने पर उभरती दूसरी कमज़ोरी,
कमज़ोरियों से हार मानना जब हो जाए ज़रूरी,
आँसू ख़ुद के, थकान अपनी
जन्म देती हैं

उन कविताओं को जो किसी की समझ में नहीं आती।

थका हुआ मन, तन हताश
कोई संबल ढूँढ़ने का हारता प्रयास
थके हुए मन की हारी हुई कल्पना
जन्म देती है

उन कविताओं को जो किसी की समझ में नहीं आती।


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