Sunday, February 23, 1997

रुकना सीख लो

हर वक़्त अपने दिल की सोचने वालों,
कभी दूसरों के भी दिल में झाँको।
स्वार्थ सदा ही ख़ुद का देखने वालों,
सोचो कामनाएँ औरों की भी हैं लाखों।

हर क़दम उठाने से पहले सोचो,
उसके नीचे कुचले जाने वालों में तुम होते तो!
मौत का प्रसाद बाँटने से पहले सोचो,
उनकी जगह मौत की नींद तुम जो सोते तो!

दूसरों पर हँसने से पहले जान लो,
तुम भी कोई अंतर्यामी नहीं हो।
भूल कल को तुमसे भी होगी
हर चीज़ के तुम भी ज्ञानी नहीं हो।

कुछ कहने-मानने से पहले ये भी सोचो,
सामने कोई तुमसे कमज़ोर नहीं है।
आज सच हो, तो कल झूठ हो जाओगे,
क़िस्मत के फेर पर किसी का ज़ोर नहीं है।

कितनी उम्र काट ली है तुमने,
जो ज़िन्दग़ी से जीत जाओगे?
हार मानना भी सीख लो तुम,
तभी कल जीत के गीत गाओगे।

हारो नहीं ज़िन्दग़ी से पर,
कभी-कभी झुकना सीख लो।
अवरुद्ध न करो राहें ज़िन्दग़ी की
पर असहायों के लिए रुकना सीख लो।

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