Sunday, February 16, 1997

इन पलकों के भीतर

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितनी ही भूली-बिसरी यादें
प्रत्यक्ष-सी कुछ कड़वी-मीठी बातें।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितने ही छूटे हुए साथी
यादें उनकी दर्शन उनके कराती।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितने ही हो चुके पापों के प्रमाण,
वे चेहरे जो निकले नहीं सरेआम।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितने ही पुण्यात्माओं की तस्वीरें
जय-जयकार जिनकी नहीं कर पाती धीरे।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
अतीत में देखे गए कितने ही स्वप्न,
जिनका बाहर की दुनिया में हो चुका अस्तित्व खत्म।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
आकांक्षाएँ वैसी कितनी ही
कुछ जो पूरी हुईं, कुछ रह गईं।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
आज की दुनिया के कितने ही चित्र
भविष्य की राह पर जो बन जाएँगे मित्र।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
अच्छे-मीठे कितने ही स्वप्न
जो सँजोए हैं ताकि हो न खत्म।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितनी ही सोची हुई इच्छाएँ
जो शायद भविष्य में पूरी हो जाएँ।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितने ही आँसू रखे हैं,
जिन्हें रोका है और अब तक नहीं बहे हैं।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितनी हृदय-विदारक बातों की तस्वीर,
कितनी ख़ूबसूरत चीज़ें जो लगती हैं हीर।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
उस स्वार्थ से चेहरे पर भरी ग्लानि
जिससे अक्सर दूसरों की हुई हानि।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
दूसरों पर आए गुस्से की लाली
जिन्हें मन-ही-मन देकर रह गई गाली।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितनी ही फूटती आशा की किरणें
संग उत्साह के जो बढ़ी मंज़िल से मिलने।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
कितने आँसू जिनका कारण होगी खुशी,
और जो अभी तक निकलने हैं बाकी।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
अच्छे-बुरे कितने ही दृश्य
सुकर्म-कुकर्म के कितने ही कृत्य।

इन पलकों के भीतर
आँखें बंद करने पर,
शायद सारा का सारा जीवन
जहाँ तक की दूरी माप सकता मेरा मन।

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