ज़िन्दगी! नहीं मानूँगी भार तुझे
ज़िन्दगी! नहीं मानूँगी भार तुझे
अब नहीं मानूँगी हार तुझसे।
कब तक ढोती जाऊँगी तुझे
ग़म और अंधकार को यथार्थ बनाकर?
कब तक मानूँगी तुझे वो दरिया
जहाँ सुख की किश्ती डूबी मझधार में आकर?
ऐ ज़िन्दगी की पूर्णिमा! सुन ज़रा,
कब तक तू दूर भागेगी मुझसे?
तू रूठ जाए तो रूठ, पर तुझे मान कल्पित
कभी भी मैं नहीं रूठूँगी तुझसे।
कर्म करने को आई हूँ मैं,
हमेशा ग़म ढोने को नहीं!
कुछ कर गुज़रने को जन्मी हूँ मैं
ज़िन्दगी! तुझसे पराजित होने को नहीं।
नहीं कहती कि दुःख आएँगे नहीं,
दावा नहीं करती कि मैं रोऊँगी नहीं।
नहीं मानती कि सुख सारे मिल जाएँगे मुझे
पर ज़िन्दगी! तुझे मैं खोऊँगी नहीं।
तमाशा कहा है तुझे लोगों ने,
तमाशा समझ कर ही जिऊँगी मैं।
दुःख तो आएँगे ही पर आज या कल
सुख! तेरा भी रस पिऊँगी मैं।
न भी पी पाऊँ तो असफलों
की गिनती में नहीं आऊँगी मैं।
उदाहरण दूसरों का लेकर
खुद एक उदाहरण बन जाऊँगी मैं।
1 comment:
good one
नितिन
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