शिकायत
इस दुनिया में सभी को सभी से शिकायत है,
शिकायतें करने की हमारी शायद बन गई आदत है,
मुझे आपसे, आपको मुझसे,
सच को झूठ से, झूठ को सच से,
शिक्षक को छात्र से, छात्र को शिक्षक से,
परीक्षक को परीक्षार्थी से, परीक्षार्थी को परीक्षक से,
आदमी को दुर्भाग्य से, दुर्भाग्य को सौभाग्य से,
पानी को आग से, उपभोक्ता को त्याज्य से,
बच्चों को बड़ों से, बड़ों को बच्चों से,
चोरों को अदालत से, नेताओं को सच्चों से,
मुलायम को लालू से, आडवाणी को राव से,
मानो खुशी को प्यार से, या दुख को घाव से,
सहेली को सहेली से, दोस्त को दोस्त से,
मानो पानी को जल से और मांस को गोश्त से,
पर दोस्तों,
जिसको शिकायत जिससे भी है,
उसका जीवन उससे ही है।
कैकेयी न होती, तो राम की महानता कहाँ,
दशरथ न होते, तो उनकी पितृभक्ति कहाँ,
लक्षमण न होते, तो भ्रातृ-प्रेम कहाँ,
और रावण न होता तो उनकी शक्ति कहाँ?
अपोज़िशन न हो, तो सरकार की महत्ता कहाँ?
जनता न हो तो उसकी सत्ता कहाँ?
अत:, छोड़ो शिकायतें हो लो साथ,
मिल जाओ सब, मिला लो हाथ,
पर यह हाथ दो-मुँहा न हो,
कुतर खाने वाला कोई चूहा न हो।
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