Sunday, March 24, 1996

मैं भी हूँ एक माँ

लोग मुझे दुत्कारते हैं कि वह माँ सौतेली है,
ममता-शून्य क्योंकि अपने बच्चे के कष्ट की पीड़ा नहीं झेली है,
कैसे समझाऊँ, इस दुनिया में माँ से दूर मैं भी रह चुकी अकेली हूँ,
कुछ दिन माँ की गोद में मैं भी पली-बढ़ी-खेली हूँ।
जानती हूँ, बच्चे के जीवन में ममता का ऊँचा स्थान है,
सफल बनाने में उसके जीवन को माँ का योगदान महान् है,
मैंने भी महसूस किया है इस खालीपन को,
याद है मैंने कैसे सँभाला था मैंने मन को,
तब से किसी के जीवन में यह खालीपन नहीं चाहती,
तभी से इच्छा थी किसी अनाथ को माँ का प्यार दे पाती,
कल पहली बार उसे पूरा करने का मौका मिला था,
किसी के दिल में मेरी ममता का फूल खिला था,
पर आज उसे मसल कर दुनिया ने फेंक दिया,
मेरी ममता के केन्द्र इसने मुझसे छीन लिया,
आज वह माँ कहकर मुझसे लिपटता नहीं,
मुझे देखकर वो भोली-सी मुस्कान हँसता नहीं,
क्योंकि आज वह महान् हो गया है,
दुनिया की नज़रों में विद्वान् हो गया है,
दुनिया ने बता दिया है उसे अपने-पराये का अन्तर,
मैं पर जानती हूँ कोरा काग़ज़ है उसका अभ्यन्तर,
उस पर लोगों ने सौतेली माँ काले अक्षरों में लिख दिया है,
माँ-बेटे का सम्बन्ध सिर्फ खून से है, ये उसने सीख लिया है।

क्या सोच है इस दुनिया की, वाह! वाह!
भूल जाती है ये कि आख़िर मैं भी हूँ एक माँ।

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