हो रही है बेचैनी सी
हो रही है बेचैनी सी, कुछ तो लिखना है मुझे,
ना हो बात जो ख़ुद पता पर, वो कोई कैसे कहे?
इंतज़ार की आदत जिसको, बरसों से है हो गई
मिलन के सपने बुनने की समझ उसे कैसे मिले?
उजड़े महलों पर ही नाचना, जिसने हरदम सीखा हो
रंगशाला की चमक भला, कैसे उसकी आँख सहे?
दे देना मत उसको खुशी, खुशी का वो क्या करे?
4 comments:
bahut hi khoobsurat likha hai aapne...
ye bahout aachi hai
Very Nice Poem
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