Wednesday, June 22, 2005

घर

तिनके जोड़ लोगो को
घर बनाते देखा है।
बाढ़ में बहते हुए
घर को बचाते देखा है।
गिरते हुए घर को
मजबूत कराते देखा है।
शायद कभी गुस्से में
घर को जलाते देखा है।

पर कभी गिराने के लिए
अपने ही हाथों से, किसी को
घर सजाते देखा है?

Tuesday, June 21, 2005

No Title

किसी और को सौंप दूँ तो क्या
क़िस्मत तो वो मेरी ही रहेगी।

जो लिख गई लिखने वाले के हाथों
कहानी तो वो वही कहेगी।
आँखें मूँद भी लूँ मैं तो क्या
बंद पलकों से ही बहेगी।

राज कर सकती है मुझपर
बातें मेरी क्यों सहेगी?

अजूबा लगता हो लगने दो
अँधेरा होता है चिराग तले ही।

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?

कोई वज़ह नहीं कि जी न सकें,
हाथ में रखा जाम पी न सकें।
मजबूत हाथों के होते भी,
फिसलन की वजह से
कभी प्याले को हाथ से गिरते देखा है?

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?