Tuesday, November 10, 1998

कवि कैसे बने

जब अपने ही दिमाग़ में
बम फट रहा हो,
अपने ही सपनों का
क़त्ल हो रहा हो.
तो कश्मीर के प्रति
सहानुभूति कैसे आए?

बहुआयामिता से डरकर,
विविधताओं में उलझकर,
जब कोई अपना ही रास्ता
पाने ना पाए,
तो कवि कैसे बने वो?
दुनिया को क्या राह दिखाए?

जब अपनी ही क़िस्मत
उसे गरीब नज़र आए,
ओर भविष्य अंधकार का
दूसरा नाम वो पाए,
तो भिक्षुक और प्रतिहारिणी पर
कैसे वो दया दिखाए?

मानवता भविष्य बना नहीं पाती,
भावनाएँ रोटी दिला नहीं पाती,
इनकी हार के और निर्बलता के किस्से
हर वक़्त उसकी आँखों के आगे आएँ,
तो मानवता पर विश्वास कैसे करे वो,
कैसे वो पाए भावनाएँ?


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