सबसे बड़ा अजूबा
सत्य से बढ़कर अजूबा
संसार में और नहीं है।
आदमी का जन्म लेना
जीवन जीना, हँसना-रोना,
मिट्टी में मिल जाना एक दिन
खेल खत्म हो जाना उस दिन
आश्चर्य इससे बड़ा कोई है?
सत्य से बढ़कर अजूबा
संसार में और नहीं है।
आदमी ही है वो जिसको
रोटी तक नसीब न होती,
आदमी ही वो भी बना है
किस्मत जिसके पाँवों की जूती।
विरोधाभास ऐसा मिला कहीं है?
सत्य से बढ़कर अजूबा
संसार में और नहीं है।
दो आँखें हैं, दो हाथ हैं,
दो कान और एक ही नाक है,
खून का रंग भी लाल ही तो है,
पर मिलती नहीं दोनों की जात है।
तर्क इसके पीछे कोई है?
"सत्य" से बढ़कर अजूबा
संसार में और नहीं है।
अपनों को ही काट रहे हैं,
बाँट रहे हैं, तोड़ रहे हैं,
बड़े घर में शायद दम घुट रहा,
इसलिए टुकड़ों में तोड़ रहे हैं।
स्थिति अजीब ऐसी कहीं है?
सत्य से बढ़कर अजूबा
संसार में और नहीं है।
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