Friday, October 07, 2005

बस कलम रह गई साथ

चला गया जो भी आया था, बस कलम रह गई साथ।
किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद।

गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ सुर और ताल
लफ़्ज़ नहीं छूटे मुझसे पर, देते रहे समय को मात।

भाषाएँ सब अलग-अलग, सीखीं और फिर भूल गई,
पर जब जो भी जाना उसमें कलम चलाते रहे हाथ।

छूट गए सब लोग पुराने, और नज़ारे जान से प्यारे
जब भी पर जो भी देखा, नज़्मों मे सब लिया बाँध।