बस कलम रह गई साथ
चला गया जो भी आया था, बस कलम रह गई साथ।
किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद।
गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ सुर और ताल
लफ़्ज़ नहीं छूटे मुझसे पर, देते रहे समय को मात।
भाषाएँ सब अलग-अलग, सीखीं और फिर भूल गई,
पर जब जो भी जाना उसमें कलम चलाते रहे हाथ।
छूट गए सब लोग पुराने, और नज़ारे जान से प्यारे
जब भी पर जो भी देखा, नज़्मों मे सब लिया बाँध।
4 comments:
it was a good poem like it very much
Very Nice Poem
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