Friday, March 04, 2005

खोजने हैं पुराने कुछ सपने।

खोजने हैं पुराने कुछ सपने।

बड़ी-बड़ी आँखों ने जब
उनसे भी बड़ी कल्पना की थी।
छोटी-छोटी बाहें भी जब
गगन को सारे अपनाती थीं।

खो गए हैं कहीं उनके साथ
कुछ विश्वास कभी जो थे अपने।

खोजने हैं पुराने कुछ सपने।

निष्कलुष आँखों ने देखा था,
जो था उनसे संतोष न था।
पर बदला जाएगा सबकुछ
कम यों इसका जोश न था।

आज की बलिष्ठ भुजाओं में
चलना है जोश वो फिर भरने।

खोजने हैं पुराने कुछ सपने।

क्या कहा बचपना था वो सब?
भूल जाऊँ मैं अब वो बात?
बचपना था तो डोर दुनिया की
दे दो आज बच्चों के हाथ।

थोड़ा बचपन मैं ले आऊँ
आज फिर से अपने मन में।

खोजने हैं पुराने कुछ सपने।


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