Thursday, November 11, 2004

प्रेरणा

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

वह जो स्वयं पीछे रहते हुए भी
किसी की कलम से निकला महाकाव्य बन जाती है,
दुनिया में अस्तित्वहीन हो भी
बड़ी-बड़ी चट्टानें पिघला पाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

वह जो सामने आए बिना भी
चित्रकार की तूलिका को गति दे जाती है,
जो खुद अदृश्य होकर भी
उस कृति में सजीव हो जाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

जो एक सरकटे के शरीर में
हज़ारों की शक्ति ले आती है,
जो एक अकेले के आगे
हज़ारों के झुका जाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

वह जिससे निद्रा-बोझिल आँखें भी
असीम ज्योति पा जाती हैं,
जो थकान से टूटे शरीर को भी
ऊर्जावान कर जाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

वह जो साधारण मानव में भी
कुछ करने का जुनून भर जाती है,
जो समर्थों से उनके छिपे हुए सामर्थ्य
का अहसास बयाँ कर जाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

जो ख़ुद कभी आगे न आई,
जिसकी सीधी गाथा न किसी ने गाई,
जो किसी के अंदर रह गई घुटकर,
पर एक रचयिता का बल उसमें गई भऱ।

जिससे निकली रचना देख
देह मेरी सिहर जाती है,
जिसके बारे में बिना जाने भी
मेरा काया उसे शीश नवाती है।

क्योंकि वह स्वयं व्यक्त नहीं हो पाती है,
शायद इसलिए वह प्रेरणा बन जाती है।

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