Thursday, June 04, 1998

जीवन

बचपन
अपने काल्पनिक सीमित आकाश में
बड़े होकर उड़ने की आकांक्षा।
जिन्हें जोड़कर पहुँच सकते हैं आकाश में
वे चार बड़े बाँस खरीदने की इच्छा।

यौवन
बचपन के सँजोए हुए सपनों का
कभी बनता, व प्रायः टूटता मंदिर।
आकाश नहीं, बस कहीं एक कतरा ज़मीन
पा लेने को व्याकुल दिमाग और दिल।

बुढ़ापा
पूरे जीवन का लेखा-जोखा करता मन
मिट्टी में मिलने की प्रतीक्षा करता तन।
काटते हुए अपने बोए बीजों को
उनमें अपने वजूद को तलाशते पूर्व कर्म।

जीवन
कमोबेश
इन सबका संगम।

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