गुलाम कौन था?
सृष्टि के आरंभ से अब तक
गुनगुनाता है ये इतिहास,
युद्धों की श्रृंखला के गीत
जिसमें नहीं होता मेरा अहसास।
मैंने भी जलाया है अपना शरीर
इन युद्धों की चिताओं पर।
लेकिन मेरा नाम कोई नहीं लिखता
सहानुभूति से इतिहास की गाथाओं पर।
क्योंकि मैं उन बर्बर शासकों का अदना सैनिक था
जिन्होंने सिन्धु-ह्वांगहो सभ्यताओं के नष्ट किया था।
क्योंकि मैं उस गोरी के टुकड़ों पर पलता था,
जिसने तुम्हारी संस्कृति को भ्रष्ट किया था।
क्योंकि मैं उस सिकंदर की सेना का अंग था,
जिसकी आकांक्षा के आड़े आ न सकी इंसानियत।
क्योंकि मैं हिटलर और मुसोलिनी का एक प्यादा था
जिनकी हर चाल में छिपी थी हैवानियत।
क्योंकि मैंने दूर किया था तुम्हें
तुम्हारे बीवी-बच्चों घर और परिवार से,
मदद की थी उन वहशी दरिंदों की नाता जोड़ने में
तुम मासूमों का दासों के बाज़ार से।
क्योंकि तुम्हारे मदमत्त शासकों के सैनिक के रूप में
मैंने बरसाई थी तुम पर गोलियाँ बदले में कुल्हाड़ियों के,
किसी के इशारे पर उतार फेंका था तुम्हें
फर्स्ट-क्लास के डब्बे से रेलगाड़ियों से।
लेकिन क्या विश्वास करोगे आज मेरी बात पर
काँपे थे हाथ मेरे गर्दनें तुम्हारी काटते हुए।
चीत्कार कर उठा था मेरा हृदय भी
मौत का या घृणित प्रसाद बाँटते हुए।
रो उठा था मेरे भीतर का इंसान,
किलकारी का रुदन में बदलना सब नहीं पाया था मैं।
वह आगजनी, नरसंहार और मुनाफ़े की हवस देख
विचलित हुए बिना रह नहीं पाया था मैं।
रोक लिया था मुझे मेरी आत्मा ने आगे बढ़ने से इस पथ पर,
लेकिन पीछे मुड़ा तो खड़ा था कोई सिकंदर।
आँखों में हैवानियत का खून उतारे
वो था कोई गोरी, गजनी, मुसोलिनी या हिटलर।
उसकी आँखों की गहराई में मुझे
नज़र आ गया था इस कोशिश पर अपने विनाश का दृश्य।
"जी हुज़ूर", "यस माई लार्ड" कहकर
मैं दुहराने पर मजबूर था अपने वो ही कृत्य।
तुम गुलाम थे तो विद्रोह किया अपनी मर्ज़ी से,
लेकिन मैंने तो अपने मन और इंसानियत को मार ही डाला था।
तुम्हारे बलिदान पर तो सहानुभूति के दो शब्द भी थे,
लेकिन मैं तो त्रिशंकु की तरह ही लटकने वाला था।
तुम गुलाम थे, मानता हूँ,
लेकिन तुमने विद्रोह तो किया।
और मैं "विजय" का सुख भोगते हुए
अपनी आत्मा की धिक्कार सुनता रहा।
आज यदि लोग तुम्हारा नाम नहीं भी जानते हैं,
तो भी श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं अनजाने नाम पर ही।
पर मुझे अनजाने में ही याद करते हैं मूर्ख और बर्बर के रूप में
जो विजेता कहलाने के लिए मिट गया अपनी खोखली आन पर ही।
बताओ गुलाम कौन था?
तुम या मैं?
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