क्यों आए?
मैंने तो छोड़ दी थी तुम्हारी खोज
मैंने तो मान लिया था
कि तुम इस दुनिया के नहीं हो,
मैंने तो तुम्हारे बिना ही
रहने की और खुश रहने की
आदत डाल ली थी,
मैंने तो मान लिया था
कि जीवन में उजाले के लिए
खुद ही जलना पड़ता है -
मैंने को मान लिया था
कि प्यास लगने पर खुद के
आँसुओं को ही
पीना पड़तो है।।
मैने तो छोड़ दी थी ये कल्पना
कि हर चोट के या सफलता के बाद
किसी को अपने आँसू दिए जा सकते हैं-
ऐसे ही कभी
उसके आँसू लिए जा सकते हैं-
और शायद मैं भूल गई थी,
कि हँसना औपचारिकता नहीं होती,
बोलना मजबूरी नहीं होती -
लेकिन मैंने अपने हिसाब से
एक सत्य ढूँढ़ लिया था -
अखंड-अटूट
क्यों खंडित कर दिया उसे?
क्यों एक रोशनी लेकर आए?
क्यों मेरे आँसू माँगे दोस्त?
नहीं जानती कि मैं दुखी हूँ या खुश!
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