Monday, August 26, 1996

ज़िन्दग़ी

ज़िन्दग़ी
एक सुहाना सफ़र,
या तनावों का घर?

ज़िन्दग़ी
एक ख़ुशनुमा स्वप्न,
या एक ख़वाब जिसमें भरा हो ग़म?

ज़िन्दगी
प्यार का गीत,
या दुखों का मीत?

ज़िन्दग़ी
एक लाभदायक समझौता,
या सपनों का टूटा घरौंदा?

ज़िन्दग़ी
पूरी होती चाह,
या एक कठिन राह?

ज़िन्दग़ी
त्याग और बलिदान,
या ज़रूरत से ज़्यादा खिंची कमान?

ज़िन्दग़ी
खुशियों का पैग़ाम,
या ग़मों की दास्तान?

ज़िन्दग़ी
क्या?
आख़िर क्या?

Sunday, August 18, 1996

राष्ट्र प्रेम - मानव प्रेम

खाकी वर्दी पहन कर गांधी टोपी चढ़ा लेना,
राष्ट्रगान गाते हुए तिरंगा फहरा लेना,
क्या यही राष्ट्र-प्रेम है?

'नारी मुक्ति' पर भाषण देकर घर में बेटियों को दबा देना,
आर्थिक सुधारों के दस्तावेज़ों के पीछे घोटालों की पंक्ति लगा देना,
क्या यही राष्ट्र-प्रेम है?

झोपड़पट्टियाँ गिरवा कर फैक्ट्रियाँ बनवा देना,
स्वतंत्रता दिवस पर अतीत का गुनगान गा देना,
क्या यही राष्ट्र-प्रेम है?

विदेशियों के आगमन पर तोपें छुड़वा देना,
और गांधी जयंती पर 'मेरा भारत महान्' बुलवा देना,
क्या यही राष्ट्र-प्रेम है?

मानवाधिकारों पर बल देते हुए बच्चों से श्रम करवा लेना,
निरीहों का उत्थान करते हुए उनके वोट गिरवा देना,
क्या यही मानव-प्रेम है?

शांतिदूत बनते हुए दो भाइयों के लड़वा देना,
'सेकुलरों' द्वारा अस्सी प्रतिशत आरक्षण करवा देना,
क्या यही मानव-प्रेम है?

बाढ़-ग्रस्त क्षेत्र का निरीक्षण कर अपना मन बहला लेना,
सूखा-ग्रस्त क्षेत्र की सहायता राशि खुद ही पचा लेना,
क्या यही मानव-प्रेम है?

सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों की रोटी छुड़वा देना,
और घंटे भर बाद खुद को गरीबों का मसीहा कहा देना,
क्या यही मानव-प्रेम है?

या कि हर मानव की सेवा में खो जाना
उस कदर कि उसमें खुद को ही बिसरा जाना
सिद्धांतों से हटकर इस राष्ट्र को यथार्थ पर लाना
अंधविश्वासों की चादर हटा कर सोई जनता को जगाना
दूसरों के कष्टों के प्रति भावुक हो जाना,
न कि अपनी भावनाओं को दूसरों पर थोप जाना
इस राष्ट्र को संकटों को सचमुच में अनुभव कर पाना
न कि लोकनिंदा के भय से नाटकीय आह भरकर रह जाना
यही राष्ट्र-प्रेम है?
हाँ,
यही राष्ट्र-प्रेम है,
यही मानव-प्रेम है,
यही धर्म-प्रेम है,
यही कर्म-प्रेम है,
यही सही ज़िन्दग़ी है,
यही सही बन्दग़ी है,
इन्सान के लिए यही सही मोहब्बत है,
जिससे ज़िन्दग़ी रहते मिल जाती जन्नत है।