Wednesday, November 23, 1994

अपराजिता

कभी शबनम, कभी शोला, कभी दामिनी बन जाती है,
हालात जिसके झुका न सके, अपराजिता कहलाती है।
अपराजिता, अपराजिता।

हार न माने जीवन में वो,
सह सके न शोषण वो।
सबसे लड़कर भी बचाए वो अपनी अस्मिता।
अपराजिता, अपराजिता।

झुका सके न संघर्ष उसको,
ना ही झुकाए दुःख का वर्ष उसको।
आदर्शता का रूप है वो, आदर्श है हर नारी का।
अपराजिता, अपराजिता।

आसान मुश्किल राहों पर चल
रुके कभी ना कि आएगा कल।
सबका रूप है सिमटा उसमें, वो रूप है हर हस्ती का।
अपराजिता, अपराजिता।

लाखों-हज़ारों हों दुश्मन उसके,
चलती चले वो अपनी ही लगन से।
जीवन दर्शन सिमटा उसमें, वो दर्शन हर रीति का।
अपराजिता, अपराजिता।

2 comments:

Anonymous said...

Have you ever read this story 'Aparajita' by Shivani?

palalvi

Anonymous said...

Have you ever read this story 'Aparajita' by Shivani?

pallavi