Saturday, May 14, 2005

चलना और बदलना

पागलपन है पर पागलपन
से ही दुनिया चलती जैसे।
इंसानों के लिए इंसानियत
सौ बार देखो गिरती कैसे।

चिल्ल-पौं ये भाग दौड़,
इक दूजे पर गिरना-पड़ना।
गर्व से कहना,"हम हैं चलाते
इस दुनिया का जीना-मरना।"

सच ही है यह झूठ नहीं पर,
शायद इनसे अलग भी कुछ है।
सुख-दुख इनसे बनते, उनसे
अलग भी सुख है, अलग भी दुख है।

दुनिया चलती नहीं है उनसे
बल्कि बदली जाती है।
जो पालक विष्णु को नहीं,
संहारक शिव को लाती है।

फिर वो निर्माता को उत्साह
भरी आवाज़ लगाती है।
और मानवता को फिर सेएक
नयी राह पर लाती है।

शायद फिर से ही गिरने को,
शायद फिर से उलझ पड़ने को।
शायद फिर सेचलाने को
दुनिया और लड़ने मरने को।

Friday, May 13, 2005

ताजमहल

सदियों से मनाते आए हो
तुम यहाँ मोहब्बत का जश्न,
पर कोई तुममे से सुन ना सका
एक ख़ामोश मूक सा प्रश्न।

उपेक्षित कुछ पल इतिहास के
जो तुम्हारे सामने रखते हैं।
पर जिनकी कमज़ोर आवाज़ को
तुम्हारे कान नहीं सुन सकते हैं।

मैं मुमताज महल हूँ - हाँ वही
जिससे हर प्रेमिका दुनिया की,
ईर्ष्या रखती होगी सोचकर
ऐसी मिलें हमें खुशियाँ भी।

कहानी मेरी सुनो आज
आज सच मेरा भी जानो
कान दे दो एक बार तो
पीछे फिर मानो ना मानो।

हरम खड़ा था - दूर होकर
चहल-पहल से इस दुनिया की।
उसमें बंद हज़ारों जैसी
मैं भी थी बस एक चिड़िया सी।

बादशाह की प्यारी थी तो
ज़्यादा रातें, कुछ ज़्यादा पल।
थोड़े ज़्यादा नौकर और फिर
मरने पर यह ताजमहल।

कर दूँ मैं क़ुर्बान सैकड़ों
आलीशान महल सब ऐसे।
प्यार अगर ऐसा मिल जाए
हों जिसमें हम एक-दूजे के।

बहुत बड़े का बड़ा-सा हिस्सा
संतोष नहीं वो दे पाता है।
छोटे से का पूर्ण अधिकार
खुशियाँ जैसी दे जाता है।

जश्न मनाओ मत पत्थर के
ताजमहल पर प्यार का तुम।
हाथों में ले हाथ कुटी में
स्वागत करो बहार का तुम।

सच्चा ताजमहल वो होगा
दे दिल जिसको बनायेंगे।
वो भी उस दिन जिस दिन दोनों
मिलकर एक हो जाएँगे।

नहीं बनाते हैं कारीगर
प्यार का कभी निशानियाँ।
बस लिख सकते वो बादशाहों
की बिगड़ी हुई कहानियाँ।