Thursday, February 26, 2009

मन

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।

अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

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खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससे नहीं ज़रा सी।

प्रश्न है खुद से जिसको ढूँढ़ा
क्या वो कोई मरीचिका थी?
और उसे सब कुछ दे डाला
बची है बस ये राख चिता की।

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

8 comments:

Unknown said...

बहुत खूब! कृपया लिखना जारी राखिये!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

जया जी ,
नमस्कार,
आप की सारी रचनायें पढ़ी। आप का प्रयास बहुत बढ़िया है।

वंदना दुबे 'तमन्ना' said...

Hey Jaya your efforts are really very nice because you write from your heart



apkiduniya-vishu.blogspot.com

Anonymous said...

Could you please suggest a good Hindi OCR?
Did you use some Hindi OCR to copy your poetries from your notebook perhaps to post it online.

Thanks!

Unknown said...

ye lines real life se kafi match karti hai..

Nisha Varma said...

Bhulna Agar Chahoge To Yad Meri Aayegi…
Dil Ki Ghrai Me Tasvir Meri Bus Jayegi…
Dhundhna Chahoge Mujse Acha Boy To
Talash Mujse Suru Hoker Muj Pe Hi Ruk Jayegi

Devansh said...

Nice

Daisy said...

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