मन
मन क्यों ना तू खुश होता रे?
जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।
अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।
मन क्यों ना तू खुश होता रे?
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खुशी न जाने क्यों नहीं आती!
मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससे नहीं ज़रा सी।
प्रश्न है खुद से जिसको ढूँढ़ा
क्या वो कोई मरीचिका थी?
और उसे सब कुछ दे डाला
बची है बस ये राख चिता की।
खुशी न जाने क्यों नहीं आती!
8 comments:
बहुत खूब! कृपया लिखना जारी राखिये!
जया जी ,
नमस्कार,
आप की सारी रचनायें पढ़ी। आप का प्रयास बहुत बढ़िया है।
Hey Jaya your efforts are really very nice because you write from your heart
apkiduniya-vishu.blogspot.com
Could you please suggest a good Hindi OCR?
Did you use some Hindi OCR to copy your poetries from your notebook perhaps to post it online.
Thanks!
ye lines real life se kafi match karti hai..
Bhulna Agar Chahoge To Yad Meri Aayegi…
Dil Ki Ghrai Me Tasvir Meri Bus Jayegi…
Dhundhna Chahoge Mujse Acha Boy To
Talash Mujse Suru Hoker Muj Pe Hi Ruk Jayegi
Nice
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