अधूरापन
है नहीं कुछ फिर क्यों भारी मन है,
दिन के अंत में कैसा अधूरापन है?
बोझिल आँखें, चूर बदन हैं, थके कदम से
कहाँ रास्ता मंज़िल का भला पाता बन है?
अधूरेपन की कविताएँ भी अधूरी ही रह जाती हैं,
पूरा कर पाए इन्हें, कहाँ कोई वो जन है?
है नहीं कुछ फिर क्यों भारी मन है,
दिन के अंत में कैसा अधूरापन है?
बोझिल आँखें, चूर बदन हैं, थके कदम से
कहाँ रास्ता मंज़िल का भला पाता बन है?
अधूरेपन की कविताएँ भी अधूरी ही रह जाती हैं,
पूरा कर पाए इन्हें, कहाँ कोई वो जन है?
Posted by Jaya at 5/12/2007 09:45:00 AM
3 comments:
कहीँ पढा था, पुनः याद आ गया...
"अधूरेपन का मसला जिंदगी भर हल नही होता,
कहीँ आँखें नही होतीं, कहीँ काजल नही होता।"
very nice poems.i m a small music composer if u will give any of your creation i will make it in to one sweet song.
have a nice day .reply soon at jd.dx1984@gmail.com
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