Monday, January 24, 2005

हम दो पल चुरा लें तो?

ज़िन्दग़ी ऐसे भागती जा रही है,
रुकने का उसको समय नहीं है ।
पर थोड़ी देर ज़िन्दग़ी को अपने घर बुला लें तो?

बारिश है, बाढ़ आ सकती है,
कमज़ोर है, जान जा सकती है ।
उससे पहले दो बार सावन के झूले झुला लें तो?

ज़िम्मेदारियाँ हैं हम पर कई तरह की,
कमी है हमारे पास समय की ।
पर इस भाग-दौड़ से भी हम दो पल चुरा लें तो?

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