tag:blogger.com,1999:blog-179143262024-03-26T02:18:17.979-07:00मेरी कविताएँJayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.comBlogger163125tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-87218136644118364722013-10-14T01:37:00.003-07:002013-10-14T01:37:28.830-07:00हम हर शहर से अजनबी हैं
रुकते बस कभी कभी हैं
हम हर शहर से अजनबी हैं।
गुल खिलते, मुरझा जाते हैं
सब खाक़ के हमनशीं हैं।
ख़्वाबों से भी गायब वो
ख़ूबसूरत माहज़बीं हैं।
नहीं हमारा हक़ लेकिन
जन्नत में कमी नहीं है।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-62534338326114887872013-09-08T01:35:00.000-07:002013-10-14T01:36:19.158-07:00एक टुकड़ा ज़मीन
एक मुठ्ठी आसमान
ढूँढ़ने के दिन चले गए।
आसमान पर ही तो लटके हैं हम,
कई फीट ऊपर।
त्रिशंकु बन गए हैं।
एक टुकड़ा ज़मीन मिल जाए
पैरों के नीचे बस,
आसमान हम फिर कभी ढूँढ़ लेंगे।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-28270936061040667732009-02-26T12:16:00.001-08:002009-02-26T12:16:36.361-08:00मनमन क्यों ना तू खुश होता रे?
जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।
अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।
मन क्यों ना तू खुश होता रे?
--
खुशी न जाने क्यों नहीं आती!
मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससेJayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-2015391060470108422008-08-22T19:07:00.001-07:002010-01-05T06:54:25.926-08:00बड़े दिनों के बादबड़े दिनों के बाद आज
सूरज से पहले जगी,
बड़े दिनों के बाद सुबह की
ठंढी हवा मुझपर लगी।
बड़े दिनों के बाद पाया
मन पर कोई बोझ नहीं,
बड़े दिनों के बाद उठकर
सुबह नयी-नयी सी लगी।
बड़े दिनों के बाद दिन के
शुरुआत की उमंग जगी,
बड़े दिनों के बाद मन में
पंख से हैं लगे कहीं।
बड़े दिनों के बाद आज
मन में एक कविता उठी,
बड़े दिनों के बाद आज,
कविता काग़ज़ पर लिखी। Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-34866985293005747512008-01-13T09:53:00.001-08:002008-01-13T09:53:37.670-08:00मन के साथ भटकना होगा
मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।
हाँ, अभी देखी थी मन नेरंग-बिरंगी-सी वह तितलीफूल-फूल पे भटक रही थीजाने किसकी खोज में पगली।
पर वह पीछे छूट गई हैइन्द्रधनुष जो वह सुन्दर हैअब उसको ही तकना होगा।
मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।
बच्चों-सा जो कल सीधा थाऔर कभी किशोर-सा चंचलआज वयस्कों-सा वह दूर, क्योंरूप बदलता है पल-पल?
मन घबराए, गुस्सा आएचोट लगे, आँसू आ जाएँहर कुछ को ही सहना होगा।Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-64260183674339388272008-01-10T11:51:00.001-08:002008-01-10T11:51:51.152-08:00खालीपन का संगीत
गाए हैं बहुत ही मैंने, सुख और दुःख के गीतआओ सुनाऊँ आज खालीपन का भी संगीत।
महसूस की है तुमने रागिनी जो बजती हैजब बाहों में होकर भी मिलता नहीं मीत?
जब सैलाब-सा होता है मन के अंदर कोई परमिलती नहीं दो बूँद जिससे धरती जाए रीत।
मुस्कान की जगह आँसू आते आँखों में जब,जीत कर भी ज़िन्दग़ी में मिलती नहीं जीत।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-83777572614057414802008-01-03T03:24:00.001-08:002008-01-03T03:24:12.631-08:00हो रही है बेचैनी सी
हो रही है बेचैनी सी, कुछ तो लिखना है मुझे,ना हो बात जो ख़ुद पता पर, वो कोई कैसे कहे?
इंतज़ार की आदत जिसको, बरसों से है हो गईमिलन के सपने बुनने की समझ उसे कैसे मिले?
उजड़े महलों पर ही नाचना, जिसने हरदम सीखा होरंगशाला की चमक भला, कैसे उसकी आँख सहे?
जिसने हँसना सीखा है, ज़िन्दग़ी के मज़ाक परदे देना मत उसको खुशी, खुशी का वो क्या करे?
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-69062089644563262092007-07-25T14:51:00.001-07:002007-07-25T14:51:55.458-07:00सवाल
सवाल कईयों ने पूछे हैं,मैं पहली नहीं हूँ।सवाल सभी पूछते हैं,मैं अकेली नहीं हूँ।
पर बहुत से लोगसवाल पूछ-पूछ कर थक गए।जवाब मिलने की तो छोड़ोकोई अलग रास्ता तक न सूझा।
उसी लीक पर चलते गए।
और मैं?
क्या कम-से-कमअलग रास्ता अपना पाऊँगी?या यों ही अपने सारे सवाल लिएएक दिन ख़ुद भी चली जाऊँगी।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-87646184003047594502007-05-12T09:45:00.000-07:002007-05-12T21:46:27.042-07:00अधूरापन
है नहीं कुछ फिर क्यों भारी मन है,दिन के अंत में कैसा अधूरापन है?
बोझिल आँखें, चूर बदन हैं, थके कदम सेकहाँ रास्ता मंज़िल का भला पाता बन है?
अधूरेपन की कविताएँ भी अधूरी ही रह जाती हैं,पूरा कर पाए इन्हें, कहाँ कोई वो जन है?
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-48956312538000770672006-12-29T20:16:00.000-08:002009-02-26T12:23:28.329-08:00कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?
धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?
बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं
चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।
बैठी थी यों ही, पर वैसे ना रह सकी
सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।
यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया
कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा। Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1160963337646860142006-10-15T09:39:00.000-07:002009-02-26T12:24:48.857-08:00मैं ही तो बेराह नहीं?सब आ जाते रास्ते पर मैं ही तो बेराह नहीं?
सबके दिन फिरते रब तक जाती मेरी आह नहीं।
छिन जाता है ये भी, वो भी, हँस कर पर देखा करती मैं
बहाने की दो आँसू भी क्यों रह गई मुझको चाह नहीं।
गीत सुना जाते शायर सब, पंछी भी कुछ गा जाते हैं,
दर्द कौन सा है अंदर कि कहती मुँह से वाह नहीं।
इम्तिहान ये ज़िन्दग़ी के इतने लंबे क्यों होते हैं
कहना पड़ जाता है खुलकर - और अब अल्लाह नहीं।Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159772462612614542006-10-01T23:54:00.000-07:002006-10-02T00:01:02.823-07:00देखने में रास्ता छूट गए हैं सब नज़ारे
देखने में रास्ता छूट गए हैं सब नज़ारे,मिल गई मंज़िल मग़र कब मिलेंगे अब नज़ारे।
नहीं थी देनी फुर्सत गर देख पाने की हमें,रास्तों के बगल मे क्यों दिए थे रब नज़ारे?
पहुँच कर भी मंज़िल पर हारे हुए से हम रहे,पीछे खड़ा खड़ा ही पर देख रहा है जग नज़ारे।
मंज़िल यों बेज़ार है कि ख़याल ये भी आता हैसच है मंज़िल या कहो फिर सच कहीं थे बस नज़ारे।Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159192139458168392006-08-27T06:42:00.000-07:002006-09-25T06:49:08.780-07:00Dedicated to Bangalore life!
तरस गई हूँ मैंपथरा गई आँखें।देख चुकी रास्ताकई बार जा के।
पूछा पड़ोसियों सेउसे देखा है कहीं।पागल समझते हैंमुझे लोग सभी।
बहुत मन्नतें माँगीबहुत रोई, गिड़गिड़ाई।कितने संदेशे भेजे परकाम वाली आज फिर नहीं आई।
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जाओ बढ़ो,बिना हॉर्न बजाए,मुझे बाईं ओर सेएक इंच की भी दूरी दिए बिनाओवरटेक करोचलाओ अपनी गाड़ीसाँप की तरह रेंगते हुएकरो आगे उसेइधर से, उधर सेजान आफ़त में डालते हुए।क्या होगा अगर आगे मुझसे निकल भी Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159192047069031472006-08-22T06:41:00.000-07:002006-09-25T06:47:27.070-07:00कहाँ ढूँढ़ूँ मैं अपना जहाँ
कहाँ ढूँढ़ूँ मैं अपना जहाँअपनी ज़मीं और आसमां।
सपनों में अक्सर देखा हैफूल वो खिलता है कहाँ?
तारों से जो झरता हैकिसने देखा है वो झरना?
उड़ पाऊँ जिनसे मैं खुलकरपंख कहो रखे हैं कहाँ?
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159192001939167462006-08-04T06:40:00.000-07:002006-09-25T06:46:41.940-07:00जो है मन में उनसे अब कविताएँ नहीं बनती
जो है मन में उनसे अब कविताएँ नहीं बनती।डुबाए बिना जो भिगो जाएँ, धाराएँ नहीं बहती।
खुशियाँ बेरुखी सही, पर दर्द भी रसहीन है।बंजर मिट्टी पर कभी लताएँ नहीं सजती।
हुनर नहीं कि बोल कर भी बात छिपा जाएँबेबाक नहीं हो सकते उससे बात नहीं बनती।
बनाते हैं वे ख़ुदा तुम्हें, अहसान नहीं करतेख़ुदाओं से दुनिया कभी ख़ताएँ नहीं सहती।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191969071908662006-04-04T06:39:00.000-07:002006-09-25T06:46:09.073-07:00अब वो मेरा जहाँ नहीं
अब वो मेरा जहाँ नहीं,ज़मीं नहीं आसमाँ नहीं।
कुछ बदला हो ना बदला होमेरे लिए वो शमाँ नहीं।
हाँ बीता सारा जीवन परमन कहता है अब वहाँ नहीं।
चलना है चलना ही हैचलना पड़ता है कहाँ नहीं।Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191938139427052005-12-09T05:38:00.000-08:002006-09-25T06:45:38.140-07:00वो दिन
देखा हमें बेरुखी से कई चैनल बदलते हुएठंढी सांस ले कर उन्होंने कहा,"रविवार की एक फिल्म के लिए मचलने वाले,हाय, वो सीधे दिन गए कहाँ।"
उन्हें जब देखते थे उस फिल्म से अकेले चिपकेअपने दिन याद करते थे उनके बुजुर्ग भीवो बड़ा सा रेडियो, जिसके चारो ओरपूरे गाँव की भीड़ लगती थी।
और उस रेडियो को भी मिली थी गालियाँकि कहाँ पहले लोग यों चिपके रहते थेक्या दिन थे वो जब शामों मेंसब मिलकर बस बातें करते थे।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191762968249982005-10-08T06:36:00.000-07:002006-09-25T06:42:42.970-07:00घाव-खुशी
घाव किसी के भरते नहीं सहलाने से कभीउन्हें तो ढँक कर छोड़ देना ही अच्छा है।जाता नहीं दर्द दास्ताँ सुनाने से कभीउससे तो बस मुँह मोड़ लेना ही अच्छा है।
मरहम बहुत ढूँढ़े सदा लोगों ने मग़रसब अच्छा करने की कोशिश के मर्ज़ काइलाज नहीं कोई, कोई हल भी नहीं हैझगड़ा ग़र हो कही फ़र्ज़ फ़र्ज़ का।
आते हैं लोग पूछने खुश कैसे रहा जाएकैसे बताऊँ वो ज़हीनी चीज़ नहीं हैमूँद लो आँखें ग़र कोई चीज़ तड़पाएखुशी वही है Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191706998787552005-10-07T06:35:00.000-07:002006-09-25T06:44:31.086-07:00बस कलम रह गई साथ
चला गया जो भी आया था, बस कलम रह गई साथ।किसी और का वो साया था, धुंधली-सी रह गई याद।
गीत कभी गाए थे मैंने, भूल गई हूँ सुर और ताललफ़्ज़ नहीं छूटे मुझसे पर, देते रहे समय को मात।
भाषाएँ सब अलग-अलग, सीखीं और फिर भूल गई,पर जब जो भी जाना उसमें कलम चलाते रहे हाथ।
छूट गए सब लोग पुराने, और नज़ारे जान से प्यारेजब भी पर जो भी देखा, नज़्मों मे सब लिया बाँध।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191658314282512005-08-06T06:34:00.000-07:002006-09-25T06:40:58.316-07:00बचपन में बताया था किसी ने
बचपन में बताया था किसी नेकि तारे उतने पास नहीं होतेजितने दिखते हैं।नहीं समझी थी मैं तब,अब समझती हूँ।
बचपन में बताया था किसी नेकि सूरज बड़ा दिखता चाँद सेफिर भी वो ज़्यादा दूर है।नहीं समझी थी मैं तब,अब समझती हूँ।
बचपन में बताया था किसी नेचलती गाड़ी पर कि पेड़ नहींहम भाग रहे हैं।नहीं समझी थी तबअब समझती हूँ।
कोई पास होकर भी दूर कैसे होता हैनज़दीक दिखती चीज़ें कितनी दूर होती हैंऔर हम भाग रहे होते Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191622227502992005-06-22T06:33:00.000-07:002006-09-25T06:40:22.226-07:00घर
तिनके जोड़ लोगो कोघर बनाते देखा है।बाढ़ में बहते हुएघर को बचाते देखा है।गिरते हुए घर कोमजबूत कराते देखा है।शायद कभी गुस्से मेंघर को जलाते देखा है।
पर कभी गिराने के लिएअपने ही हाथों से, किसी कोघर सजाते देखा है?
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191594846887372005-06-21T06:33:00.000-07:002006-09-25T06:39:54.846-07:00No Title
किसी और को सौंप दूँ तो क्याक़िस्मत तो वो मेरी ही रहेगी।
जो लिख गई लिखने वाले के हाथोंकहानी तो वो वही कहेगी।
आँखें मूँद भी लूँ मैं तो क्याबंद पलकों से ही बहेगी।
राज कर सकती है मुझपरबातें मेरी क्यों सहेगी?
अजूबा लगता हो लगने दोअँधेरा होता है चिराग तले ही।
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191534595824402005-06-21T06:32:00.000-07:002006-09-25T06:38:54.596-07:00कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?
कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?
कोई वज़ह नहीं कि जी न सकें,हाथ में रखा जाम पी न सकें।मजबूत हाथों के होते भी,फिसलन की वजह सेकभी प्याले को हाथ से गिरते देखा है?
कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?
Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191501211356462005-05-14T06:31:00.000-07:002006-09-25T06:38:21.216-07:00चलना और बदलना
पागलपन है पर पागलपनसे ही दुनिया चलती जैसे।इंसानों के लिए इंसानियतसौ बार देखो गिरती कैसे।
चिल्ल-पौं ये भाग दौड़,इक दूजे पर गिरना-पड़ना।गर्व से कहना,"हम हैं चलातेइस दुनिया का जीना-मरना।"
सच ही है यह झूठ नहीं पर,शायद इनसे अलग भी कुछ है।सुख-दुख इनसे बनते, उनसेअलग भी सुख है, अलग भी दुख है।
दुनिया चलती नहीं है उनसेबल्कि बदली जाती है।जो पालक विष्णु को नहीं,संहारक शिव को लाती है।
फिर वो निर्माता को Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-17914326.post-1159191436796962892005-05-13T06:30:00.000-07:002009-02-26T12:31:04.399-08:00ताजमहलसदियों से मनाते आए हो
तुम यहाँ मोहब्बत का जश्न,
पर कोई तुममे से सुन ना सका
एक ख़ामोश मूक सा प्रश्न।
उपेक्षित कुछ पल इतिहास के
जो तुम्हारे सामने रखते हैं।
पर जिनकी कमज़ोर आवाज़ को
तुम्हारे कान नहीं सुन सकते हैं।
मैं मुमताज महल हूँ - हाँ वही
जिससे हर प्रेमिका दुनिया की,
ईर्ष्या रखती होगी सोचकर
ऐसी मिलें हमें खुशियाँ भी।
कहानी मेरी सुनो आज
आज सच मेरा भी जानो
कान दे दो एक बार तो
पीछे Jayahttp://www.blogger.com/profile/09739951508347074067noreply@blogger.com3