Friday, March 19, 1999

क्योंकि मैं एक इंसान हूँ

अच्छा लगता है मुझे देखना
नए या अधखिले फूलों को।
अच्छा लगता है मुझे झूलना
सावन के झूलों को।

क्योंकि मैं एक प्राणि हूँ।

अच्छा लगता है मुझे निहारना
खुले, नीले आकाश को।
अच्छा लगता है सुनना पर्वतों से
टकरा कर लौटने वाली आवाज़ को।

क्योंकि मैं एक प्राणि हूँ।

अच्छा लगता है देखना यों ही
किसी भी चीज़ को एकटक।
अच्छा लगता है शांति से एकांत में
बिना कुछ किए बैठना देर तक।

क्योंकि मैं एक प्राणि हूँ।

अच्छी लगती मुझे बर्फ की
सौम्य, उज्ज्वल श्वेतिमा।
इच्छा होती है कि जाऊँ क्षितिज तक
जिसकी नहीं है कोई सीमा।

क्योंकि मैं एक प्राणि हूँ।

लेकिन माफ़ करना मुझे तू सौंदर्य!
माफ़ करना मुझे तू शांति!
समय बहुत दुर्लभ है मेरे लिए
दुर्लभ है मेरे लिए एकांति।

कर्तव्य मेरा मुझे पुकार रहा है,
अनदेखी उसकी मैं कर नहीं सकती।
उसके नियत कर्तव्य पूर्ण किए बिना
जीना तो दूर मैं मर नहीं सकती।

क्योंकि मैं एक इंसान हूँ।