Saturday, September 27, 1997

भारतमाता!

भारतमाता!

शत्-शत् है नमन तुझे,
तन-मन है अर्पण तुझे।

भारतमाता!

खुद को ज्ञानी कहने से डरती हूँ,
पर फिर भी सोचने की कोशिश करती हूँ,
जब देखा होगा तूने सभ्यता का पहला उजियाला,
पहनी होगी पहली बार, महिमा-गीतों की माला।
कभी जन्मे होंगे कंस-रावण करने को संहार तेरा,
उतरे होंगे राम-कृष्ण भी करने को उद्धार तेरा।
वशिष्ठ, सांदीपनी देते होंगे
माता-सा ही मान तुझे,
करते होंगे तेरी वंदना,
"तूने ही दिया है ज्ञान मुझे।"
बढ़े होंगे फिर आर्य-पुत्र
संस्कृति के पुनीत पथ पर।
होती होगी तू आनंदित
संतानों की प्रगति लखकर।
क्योंकि तू ही वो होगी जिसने
प्राण से प्रिय बच्चों को अपने
तड़प-तड़प कर, बिलख-बिलख कर,
प्रकृति के कष्टों से लड़कर,
किसी-किसी तरह से जीकर,
मरते हुए देखा होगा।
जना होगा तूने जनक को,
स्वर्ण-युग भोगा होगा।
लिच्छवी गणतंत्र देखकर
अशोक-राज देखा होगा।
आए होंगे शक-कुषाण,
फिर ग्रीक-हूण आए होंगे।
थामकर तलवार हाथ में
तेरे बेटों ने देश-गीत गाए होंगे।
सबको समाती गई होगी तू,
सबको अपनाती गई होगी तू।
'वसुधैव कुटुम्बकम' का प्यारा
गीत गाती गई होगी तू।
बुद्ध-जीन ने भी उसी वक़्त
प्रेम-पाठ गाया होगा।
त्रिरत्न और अष्टांग का
मार्ग भी बताया होगा।
आया होगा बाबर भी फिर,
अकबर ने सिर झुकाया होगा।
हाकिंस के तुझपर क़दम पड़े,
भविष्य सोच दिल तो तेरा रोया होगा।
औरंगजेब ने क्रूरता से
तेरा दिल दुखाया होगा,
लड़ते देख बच्चों को अपने,
जी तो भर ही आया होगा।
बंगाल बना होगा कहीं,
कहीं मैसूर बनाया होगा,
तेरे ही बच्चों ने तेरे अंग-अंग को
बाँट-बाँट कर नाम अलग बताया होगा।
दरारें पड़ गई होंगी
होगी तू अपनों की मारी।
बीच में घुसी होंगी बेड़ियाँ
होगी असहाय तू उनसे हारी।
रोती होगी क़िस्मत पर तू,
"गया कहाँ अब मान मेरा?"
चिल्लाती होगी बच्चों को,
"बहुत हुआ अब जाग ज़रा।"
टकराकर पत्थर से आवाज़ें
तुझ तक ही वापस आती होंगी,
रोकर बच्चों की दुर्दशा पर कोई
शोक-गीत तू गाती होगी।
ढूँढ़ती होंगी तेरी आँखें,
किसी आर्य को, किसी गुप्त को,
जगाना चाहती होगी तू
भारतीयों के हृदय सुप्त को।
जन्मा होगा कोई तिलक फिर
उतरा होगा कोई गाँधी,
झेली होगी भगत सिंह ने
अपने ऊपर तेरी आंधी।
उपजा होगा उत्साह नया
रंग वही लाया होगा,
गुम हुई स्वाधीनता को
तूने फिर पाया होगा।
अब तक के इतिहास में तूने
मानव की मानवता देखी होगी,
दानवता भी भोगी होगी
देवत्व की गोद में तू लेटी होगी।
आर्यपुत्रों का पतन देखा होगा तूने,
मानव को दानव में बदलते देखा होगा,
डरकर इन परिवर्तनों से संभवतः तेरा कोई
पुत्र तेरी गोद में आकर भी लेटा होगा।
ख़ैर! अंत मे एक दिन तूने
मंज़िल एक पाई होगी,
होकर प्रफुल्लित एक बार फिर
तू प्रेम-गीत गाई होगी।
पाकर स्वीधीनता तूने
सपने नए सँजोए होंगे,
सपनों को पूरा करने को
आशा-बीज बोए होंगे।

भारतमाता!

किन्तु सच-सच बतलाना मुझको
क्या स्वप्न-लोक वह चूर हो गया?
आशाओं का रूप वो तेरा
क्या काल्पनिक एक हूर हो गया?
शायद सच!
झटका लगा था ना तुझको
जब अंग तेरा एक भंग हुआ था?
रोई थी न तू बहुत ही
जब मिट्टी का लाल रंग हुआ था?
रोती है न आज भी बहुत
सुनकर तू खेल उनके?
धिक्कारती है न ख़ुद को ही तू
देख कपूतों के मेल अपने?
'इंडिया, नथिंग बट रबिश' जब सुनती है तू
टीस तेरे दिल में उठती है न?
जब अखबार होते हैं काले, काले कारनामों से
तब शर्म से नज़रें तेरी झुकती हैं न?
जब मुकुट पर तेरे चलती है गोलियाँ
तो नसें दिमाग़ की फटती हैं न?
लाता है सागर जब कुसंसकृति का ज़हर
तो पहचान तेरी मिटती है न?

भारतमाता!

दे-दे बस अपना आशीर्वाद।
दे-दे अपनी कृपा का प्रसाद।
शक्ति दे तू इतनी मुझको,
ढूँढ़ पाऊँ मैं चन्द्रगुप्त,
सिकंदर को हराने को उठा सकूँ मैं
उन हृदयों को जो पड़े हैं सुप्त।
या फिर ख़ुद ही बन जाऊँ मैं
विवेकानंद या बुद्ध महान्।
जयचंद का भूत भगाकर
बन जाऊँ खुद ही चौहान।
हो एक बार फिर विश्व में
तेरे ही ज्ञान की विजय।
ताकि हम फिर पुकार पाएँ
"भारतमाता! तेरी हो जय!"