Friday, March 29, 1996

मेरा वो परिवार महान् था

जाने कैसे जीवन बीतता जाता है और यादें धूमिल पड़ती जाती हैं,
पर, कभी मुश्किलों में सहारा खोजते वक्त वो यादें बहुत आती हैं।
आज जब मैं अकेली रहती हूँ,
तो अपने उस जीवन, उस परिवार को याद करती हूँ,
जहाँ शायद कोई मेरी सगा अपना न था,
पर उनका स्नेह, वो प्यार कोई सपना न था।

वे बेगाने इन अपनों से अच्छे थे,
खून का रिश्ता न हो, पर मन के रिश्ते सच्चे थे,
उन रिश्तों में एक मिठास थी,
उन रिश्तों की ज़रूरत भी कुछ खास थी।

वे रिश्ते हवा-पानी की तरह महत्वपूर्ण थे,
रिश्तों की डोर से बँधे लोग अलग थे, पर एक दूसरे से मिलकर पूर्ण थे,
वे रिश्ते गंगाजल की तरह पवित्र थे,
जिसमें सभी एक दूसरे के विश्वासी मित्र थे।

उन रिश्तों में एक अनोखा बंधन था,
प्यार-मोहब्बत, दिल-ओ-दिमाग़ का संगम था।

उन रिश्तों की नींव पर हमने सुंदर मंदिर बनाया था,
जिसके भक्तों ने खुद के अंदर सागर-सा दिल पाया था,
उस अथाह दिल के अंदर सबके लिए स्थान था,
सच मैं सोचती हूँ मेरा वो परिवार महान् था।

Tuesday, March 26, 1996

संगीत

संगीत को गीत, वाद्य और नृत्य का मिलन बताने वालों!
संगीत लय-ताल में बँधा सिर्फ शब्द-समूह नहीं है,
"मन के भाव प्रकट करना" उसकी परिभाषा सही है।
संगीत का उद्गम-स्थल है आत्मा,
वही संगीत है जो हृदय-विकारों का कर सके खात्मा।
संगीत नारी के श्रृंगार का प्रतीक नहीं है,
जो तुम देते हो परिभाषा सटीक नहीं है।

संगीत का लिखित इतिहास बनाने वालों!
संगीत में लिखने की कोई चीज़ नहीं है,
संगीत में छिपी किसी सम्राट् की हार-जीत नहीं है।
मुश्किल ही नहीं असंभव है जानना कब हुआ इसका जन्म
क्योंकि जिस भाषा में ढालते हो, उसकी उम्र है कहीं कम।
संगीत सिर्फ किसी विरही का मीत नहीं है,
जो तुम लिखते हो इतिहास सटीक नहीं है।

संगीत की परिभाषा खोजने वालों!
संगीत की परिभाषा कोई लिख नहीं सकता,
स्वरूप इसका कभी कहीं मिट नहीं सकता,
तुम्हारे इस छल प्रपंच के संसार से दूर है,
इसे मिटा नहीं सकते, सुगंधित भावना का फूल है।
मनुष्य की तीव्र बुद्धि से इसका नाता नहीं है,
भावना-शून्य व्यक्ति कभी गीत गाता नहीं है।

Sunday, March 24, 1996

मैं भी हूँ एक माँ

लोग मुझे दुत्कारते हैं कि वह माँ सौतेली है,
ममता-शून्य क्योंकि अपने बच्चे के कष्ट की पीड़ा नहीं झेली है,
कैसे समझाऊँ, इस दुनिया में माँ से दूर मैं भी रह चुकी अकेली हूँ,
कुछ दिन माँ की गोद में मैं भी पली-बढ़ी-खेली हूँ।
जानती हूँ, बच्चे के जीवन में ममता का ऊँचा स्थान है,
सफल बनाने में उसके जीवन को माँ का योगदान महान् है,
मैंने भी महसूस किया है इस खालीपन को,
याद है मैंने कैसे सँभाला था मैंने मन को,
तब से किसी के जीवन में यह खालीपन नहीं चाहती,
तभी से इच्छा थी किसी अनाथ को माँ का प्यार दे पाती,
कल पहली बार उसे पूरा करने का मौका मिला था,
किसी के दिल में मेरी ममता का फूल खिला था,
पर आज उसे मसल कर दुनिया ने फेंक दिया,
मेरी ममता के केन्द्र इसने मुझसे छीन लिया,
आज वह माँ कहकर मुझसे लिपटता नहीं,
मुझे देखकर वो भोली-सी मुस्कान हँसता नहीं,
क्योंकि आज वह महान् हो गया है,
दुनिया की नज़रों में विद्वान् हो गया है,
दुनिया ने बता दिया है उसे अपने-पराये का अन्तर,
मैं पर जानती हूँ कोरा काग़ज़ है उसका अभ्यन्तर,
उस पर लोगों ने सौतेली माँ काले अक्षरों में लिख दिया है,
माँ-बेटे का सम्बन्ध सिर्फ खून से है, ये उसने सीख लिया है।

क्या सोच है इस दुनिया की, वाह! वाह!
भूल जाती है ये कि आख़िर मैं भी हूँ एक माँ।

Monday, March 18, 1996

मेरी सहेली

यो प्रश्न आज तक मेरे लिए है एक पहेली
जिसे ढूँढ़ती हूँ मैं कौन है वह सच्ची सहेली?

मैं नहीं चाहती केवल एक सहेली,
जो हो एक जानी समझी पहेली,
मुझे चाहिए कोई मेरा अपना,
जो कि सच हो न हो केवल सपना,
जिसके पास मन का अच्छा रूप हो,
भले ही उसकी चमड़ी काली कुरूप हो,
जो मुझे समझ सके,
और मेरे साथ रो-हँस सके,
जो मुझे पहचान सके,
मेरे अंतर की आवाज़ को जान सके,
मुझे सिर्फ मेरे ही रूप में मान सके,
जिसपर मैं विश्वास कर सकूँ,
आगे बढ़ने के लिए जिससे सहायता की आस कर सकूँ,
जो मेरी मुश्किलों का हल बता सके,
और मेरी मेहनत का फल दिला सके,
क्या इस संसार में कोई ऐसा मनुष्य है,
जो मेरी कल्पना के मित्र तुल्य है?
हे ईश्वर क्या मैं उसे कभी पा सकूँगी?
और उसे पा जीवन में सफलता के फूल ला सकूँगी?

Saturday, March 16, 1996

भारतीय इतिहास और विद्यार्थी

भारतीयों को गर्व हैं कि उनका इतिहास बड़ा लम्बा है,
पर हमारे लिए तो यो एक ऐसा मोटा खम्भा है,
जिसे तोड़ने हमारे कर्तव्यों में गिना जाता है,
हमें रास नहीं आता है,
और यही खम्भा गौरव बनाकर हम पर थोपा जाता है।
बहुत दुःख झेले भारतीयों मे अँग्रेजों के वक़्त इसकी तो हमें है अनुभूति,
पर, हाय! कोई हमारे दुःख से भी तो रखे सहानुभूति।
आज उनके दुःख पर हम आहें तो भरते हैं,
पर उनके नाम याद करने में जो हम मरते हैं,
उसे हमारे इतिहासकार शायद समझा नहीं करते हैं।

उन्होंने दुत्कारा अमरीका को क्योंकि तीन सौ साल ही पुराना देश है,
पर यारों, वो जानते नहीं हमारा कुछ अलग सा ही केस है।

हाय! कितना अच्छा है वहाँ के विद्यार्थियों को,
तीन सौ सालों को ही रटते हैं,
पर भारत का इतिहास हज़ारों साल पुराना है,
इसका ज़ुर्माना हम ही तो भरते हैं।

Thursday, March 14, 1996

उपवास

वह था जन्माष्टमी का शुभ दिन,
कुछ धर्मात्मा बारह बजे के घंटे रहे था गिन,
कब जाकर उनकी भूख मिटे,
कब सर से यह भारी बोझ हटे।
उनमें से एक ने मुझे आवाज़ लगाई,
पास बिठा कर मुझको धर्म की बात बताई,
"साल में नहीं रख सकती थीं एक जन्माष्टमी का उपवास?"
मैंने इशारा किया उधर जिधर धर्मात्मा कर रहे थे बाप-बाप।
क्या जवाब दें यह सूझ उन्हें नहीं आई,
पर एक अनोखी बात मुझे याद आई।
हाल में एक समाचार आया है,
जिसने पत्थर तक का दिल दहलाया है,
एक भोली, बेक़सूर लड़की को निगल गई मौत की छाया है,
हफ़्ते में छह दिन उपवास रखने वाली माँ ने क्या सुंदर फल पाया है।
जाने क्यों यह उपवास ईश्वर को रास नहीं आया है,
इस सच्ची भक्ति का ईश्वर ने ये कठोर दंड सुनाया है।
जब सच्चाई की यह हालत है, तो ढोंग की तो है बात निराली,
दुरुस्तों का ठिकाना नहीं तो जान-बूझ कर किसने है बीमारी पाली?